Here is a nice poem dipped in the nostalgia of growing up in a small town. Rajiv Krishna Saxena
छोटे शहर की यादें
मुझे फिर बुलातीं हैं मुस्काती रातें,
वो छोटे शहर की बड़ी प्यारी बातें।
चंदा की फाँकों का हौले से बढ़ना,
जामुन की टहनी पे सूरज का चढ़ना।
कड़कती दोपहरी का हल्ला मचाना,
वो सांझों का नज़रें चुरा बेर खाना।
वहीं आ गया वक्त फिर आते जाते,
ले फूलों के गहने‚ ले पत्तों के छाते।
बहना का कानों में हँस फुसफुसाना,
भैया का शावर में चिल्ला के गाना।
दीदी का लैक्चर‚ वो मम्मी की पूजा,
नहीं मामू से बढ़ के गप्पोड़ दूजा।
सुनाने लगा कोई फ़िर से वो बातें,
वो तुलसी के दिन और चम्पा की रातें।
परीक्षा के दिन पेट में उड़ती तितली,
पिक्चर के क्लाइमैक्स पे गुल होती बिजली।
साइकिल वो लूना‚ वो गिरना संभलना,
वो बेज़ार गलियाँ‚ झुका सिर वो चलना।
उधारी के कंचे‚ वो छल्लों के खाते,
है क्या क्या गँवाया यहाँ आते–आते।
मुझे फिर बुलाती हैं मुस्काती रातें,
वो छोटे शहर की बड़ी प्यारी बातें।
∼ शार्दुला नोगजा
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saach main.. now I really feeling nostalgic… Bahut badiya… nishabd rah gaya hu.. ye to mere hi upper likhi kavita hai .. aisa lag raha hai.. apki kavita main apni website m dalna chahta hun taaki jyada se jyada logon tak pahunche ye kavita.