March of Maharana Pratap army to fight Akbar's army
राणा का ओज भरा आनन, सूरज समान चमचमा उठा, बन महा काल का महा काल, भीषण भाला दम दमा उठा

हल्दीघाटी: युद्ध के लिये प्रयाण – श्याम नारायण पाण्डेय

In mid 1500s Akbar the Mughal emperor of India, in his bid to consolidate his empire, had entered into agreements with Rajput kingdoms except that of Mewar. Maharana Pratap of Mewar was defiant and did not want to lose his independence. Frustrated Akbar sent his massive army led by Mansingh (a Rajput too) to take Mewar by force. The two armies met in the battlefield of Haldighati, a small village about 50 KM from Udaipur. On June 18, 1576, a bloody battle took place in which Rana Pratap riding his legendary horse Chetak, displayed such a super-human resolve and valor, that it become forever entrenched in the psyche of Indian people. Haldighati is an epic written by Shri Shyam Narayan Pandey that covers all aspects of this battle. The epic has an amazing grace to it and an electrifying quality that has made it an evergreen classic in Hindi literature. The sheer flow of the narration, choice of words and the gripping rhythm in this epic have few parallels in Hindi literature. In the following piece the poet describes the march of Mughal and Rana Pratap’s armies. – Rajiv K. Saxena

हल्दीघाटी: युद्ध के लिये प्रयाण

डग डग डग रण के डंके
मारू के साथ भयद बाजे,
टप टप टप घोड़े कूद पड़े
कट कट मतंग के रद बाजे

कल कल कर उठी मुगल सेना
किलकार उठी, ललकार उठी
असि म्यान विवर से निकल तुरत
अहि नागिन सी फुफकार उठी

फर फर फर फर फर फहर उठा
अकबर का अभिमानी निशान
बढ़ चला कटक ले कर अपार
मद मस्त द्विरद पर मस्त मान

 

कोलाहल पर कोलाहल सुन
शस्त्रों की सुन झ्ंकार प्रबल
मेवाड़ केसरी गरज उठा
सुन कर अरि की ललकार प्रबल

हर एकलिंग को माथ नवा
लोहा लेने चल पड़ा वीर
चेतक का चंचल वेग देख
था महा महा लज्जित समीर

लड़ लड़ कर अखिल महीतल को
शोणित से भर देने वाली
तलवार वीर की तड़प उठी
अहि कंठ कतर देने वाली

 

राणा का ओज भरा आनन
सूरज समान चमचमा उठा
बन महा काल का महा काल
भीषण भाला दम दमा उठा

भेरी प्रताप की बजी तुरत
बज चले दमामे धमर धमर
धम धम रण के बाजे बाजे
बज चले नगारे धमर धमर

अपने पैने हथियार लिये
पैनी पैनी तलवार लिये
आये खर, कुन्त, कटार लिये
जननी सेवा का भार लिये

 

कुछ घोड़े पर, कुछ हाथी पर
कुछ योद्धा पैदल ही आये
कुछ ले बरछे, कुछ ले भाले
कुछ शर से तरकस भर लाये

रण यात्रा करते ही बोले
राणा की जय, राणा की जय
मेवाड़ सिपाही बोल उठे
शत बार महाराणा की जय

हल्दीघाटी के रण की जय
राणा प्रताप के प्रण की जय
जय जय भारत माता की जय
मेवाड़ देश कण कण की जय

हाथी सवार हाथी पर थे
बाजी सवार बाजी पर थे
पर उनके शोणित मय मस्तक
अवनी पर मृत राजी पर थे

∼ श्याम नारायण पाण्डेय

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