चूड़ी का टुकड़ा – गिरिजा कुमार माथुर

चूड़ी का टुकड़ा – गिरिजा कुमार माथुर

A man’s past life is a repository of events that took place – some painful, others mundane. There also are memories of some beautiful and magical moments, long past, whose memories may be triggered by things associated with those moments. Here is a lovely poem of Girija Kumar Mathur, conveying the emotion. Rajiv Krishna Saxena

चूड़ी का टुकड़ा

आज अचानक सूनी­सी संध्या में
जब मैं यों ही मैले कपड़े देख रहा था
किसी काम में जी बहलाने,
एक सिल्क के कुर्ते की सिलवट में लिपटा,
गिरा रेशमी चूड़ी का
छोटा­सा टुकड़ा,
उन गोरी कलाइयों में जो तुम पहने थीं,
रंग भरी उस मिलन रात में

मैं वैसे का वैसा ही
रह गया सोचता
पिछली बातें
दूज­ कोर से उस टुकड़े पर
तिरने लगीं तुम्हारी सब लज्जित तस्वीरें,
सेज सुनहली,
कसे हुए बन्धन में चूड़ी का झर जाना,
निकल गई सपने जैसी वह मीठी रातें,
याद दिलाता  रहा
यही छोटा­ सा टुकड़ा

∼ गिरिजा कुमार माथुर

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