पीथल और पाथल – कन्हैयालाल सेठिया

पीथल और पाथल – कन्हैयालाल सेठिया

You may have read Shyam Narayan Pandey’s classic epic “Haldighati”. Three excerpts from that great work are available on this site. Many readers had asked me to include a Rajasthani classic poem on the same theme by the great poet Kanhaiyalal Sethia, but I could not find that poem any where. Fortunately one reader Prof. Anil Bhalekar sent me excerpts from this poem and I am very happy to include it in our collection. Any one with good knowledge of Hindi should be able to understand this poem, which is in Rajasthani. Few difficult words have been explained below. Rana Pratap the great Rajput kept fighting Akbar in order to save his land of Mewar from going to Mughals. In the process he passed through highly despairing times, hiding in jungle with his family. Poet here tells how one day when Rana’s family had nothing else to eat, his son Amar was given a bread made from grass seeds. But even that piece of bread was snatched by a wild cat in the jungle. Seeing his son crying with hunger broke Rana’s heart and he sent a letter of surrender to Akbar. Akbar could not believe his eyes, and sent for the poet Pithal, who was a great admirer of Rana’s resolve and velour. Pithal was shattered to see this downfall of Rana and wrote to him few lines that shook Rana back into his original resolve to keep fighting Akabar. Please spend some time with this classic poem and enjoy it. Pathal here refer’s to Partha (Arjun) that was another name for Rana Pratap. Rajiv Krishna Saxena

पीथल और पाथल

अरे घास री रोटी ही , जद बन बिलावडो ले भाग्यो
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो
अरे घास री रोटी ही

हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
मै पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै
सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै
अरे घास री रोटी ही

पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी ने
हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी ने
महलां मे छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी
सोना री थालियां, नीलम रा बाजोट बीना धरता कोनी
अरे घास री रोटी ही

ऐ आज झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ली सेजां पर
ऐ आज फिरे भुख़ा तिरसा , हिन्दवाणी सुरज रा टाबर
आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम वजर छाती
आँख़्यां में आंसु भर बोल्याे , में लीख़स्युं अकबर ने पाती
पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ रावल ऊंचो हियो लियां
चितौड ख़ड्यो है मगरा में ,विकराल भूत सी लियां छियां
अरे घास री रोटी ही

मे झुकूं कियां है आण मने , कुल रा केसरिया बाना री
मे बूज्जू कियां हूँ शेष लपट , आजादी रे परवाना री
पण फेर अमर री सुण बुसकयां , राणा रो हिवडो भर आयो
मे मानुं हूँ तिलीसी तन , सम्राट संदेशो कैवायो
राणा रो कागद बाँच हुयो , अकबर रो सपनो सौ सांचो
पण नैण करो बिश्वास नही ,जद बांच-बांच ने फिर बांच्यो
अरे घास री रोटी ही

कै आज हिमालो पिघल गयो , कै आज हुयो सुरज शीतल
कै आज शेष रो सिर डोल्यो ,आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
बस दूत ईशारो जा भाज्या , पिथल ने तुरन्त बुलावण ने
किरणा रो पिथल आ पहुंच्यो ,ओ सांचो भरम मिटावण ने
अरे घास री रोटी ही

बीं वीर बांकूडो पिथल ने , रजपुती गौरव भारी हो
वो क्षात्र धरम रो नेमी हो , राणा रो प्रेम पुजारी हो
बैरयां रे मन रो कांटो हो , बिकाणो पुत्र करारो हो
राठोङ रणा मे रह्तो हो , बस सागी तेज दुधारो हो
अरे घास री रोटी ही

आ बात बादशाह जाणे हो , घावां पर लूण लगावण ने
पिथल ने तुरन्त बुलायो हो , राणा री हार बंचावण ने
म्है बान्ध लियो है ,पिथल सुण, पिंजर मे जंगली शेर पकड
ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
अरे घास री रोटी ही

मर डूब चुंलु भर पाणी मे , बस झुठा गाल बजावो हो
प्रण टूट गयो ही राणा रो , तूं भाट बण्यो बिड्दावे हो
मे आज बादशाह धरती रो , मेवाडी पाग पगां मे है
अब बता मन,किण रजवट रो, रजपूती खून रगा मे है
अरे घास री रोटी ही

जद पिथल कागद ले देखी , राणा री सागी सेनाणी
नीचै सुं धरती खीसक गयी, आँख़्या मे भर आयो पाणी
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सफा ही झुठी है
राणा री पाग सदा उंची , राणा री आण अटूटी है
अरे घास री रोटी ही

ल्यो हुकम हुवे तो लिख पुछूं , राणा रे कागद रे खातर
ले पूछ भल्या ही पिथल तू ,आ बात सही, बोल्यो अकबर
म्है आज सुणी है, नाहरियां श्यालां रे सागे सोवे ला
म्है आज सुणी है, सुरजडो बादल री ओट्यां ख़ोवेला
म्है आज सुणी है, चातकडो धरती रो पाणी पीवे ला
म्है आज सुणी है, हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवेला ||

म्है आज सुणी है, थका खसम, अब रांड हुवेली रजपूती
म्है आज सुणी है, म्यानां मे तलवार रहवैला अब सुती
तो म्हारो हिवडो कांपे है , मुछ्यां री मौड मरोड गयी
पिथल ने राणा लिख़ भेजो , आ बात कठा तक गिणां सही.
अरे घास री रोटी ही

पिथल रा आख़र पढ्तां ही , राणा री आँख़्यां लाल हुई
धिक्कार मने मै कायर हुं , नाहर री एक दकाल हुई
हुँ भूख़ मरुँ ,हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
हुँ भोर उजाला मे भट्कुं ,पण मन मै माँ री याद रहे
हुँ रजपुतण रो जाेयो हुं , रजपुती करज चुकावुंला
ओ शीष पडै , पण पाग़ नही ,पीढी रो मान हुंकावूं ला
अरे घास री रोटी ही

पिथल के ख़िमता बादल री,जो रोकै सुर्य उगाली ने
सिंहा री हातल सह लेवै, वा कूंख मिली कद स्याली ने
धरती रो पाणी पीवे ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
कुकर री जूण जीवेला हाथी री बात सुणी कोनी ||
आ हाथां मे तलवार थकां कुण रांड केवे है रजपूती
म्यानां रे बदलै बैरयां री छातां मे रेवेला सुती ||
मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ मे चम – चम चमकेलो
कडक री उठ्ती ताना पर, पग पग पर ख़ांडो ख़ड्कैलो
राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
हुँ अथक लडुंला अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूला
जद राणा रो शंदेष गयो पिथल री छाती दूणी ही
हिन्दवाणी सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही

∼ कन्हैयालाल सेठिया

लिंक्स:

 

Check Also

In the midst of noise and extreme disarray, I am the voice of heart

तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद

In times of deep distress and depression, a ray of hope and optimism suddenly emerges …

20 comments

  1. Very very nice poem written by Kahailalji Sethiya, this poem was in syllabus @ 7th standard. Loves this poem very much.

  2. सूरज सिनोलिया

    पिछले 35 साल पूर्व इसे एक मित्र ( श्री कालूराम गाडरी) द्वारा बडे ओजस्वी अन्दाज मे गाया और उसी जोश के साथ हम-श्री पुश्कर जी की पहाडी-सरस्वती देवी मंदिर- पर चड गये

  3. बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं कवि लोगों को

  4. Kansingh rajpurohit

    Jaha nahi pahuta ravi vaha pahuch jata kavi _ kanyalalji setjiya me sarda suman arpit karta hu

  5. sab se phale us kavi ke charno men pranam jisane is kavita ki rachana ki.is kavita ko gate samay khath(wood)ki stej ho to kya kahane.

  6. Bhot khub kanhayalal ji aapko bhut naman

  7. सुखविन्दर सिंह

    हम भाग्य शाली हैं कि हमारे देश में वीरों की गाथाओं को अनेक कवियों ने कविताओं और गीतों के माध्यम से आम जन तक तक पहुचाया और लोगों में देश भक्ति की अलख जगाने का किया है, अन्यथा राजनीती और सत्ता के लोभियों ने तो कई वीरो के नाम ही इतिहास से हटाने की नाकाम कोशिश की है। दिल से नमन देश के वीर सपूतों और कवियों को।

  8. Best for motivation

  9. sir yeh poem ek toh rana ji ki h dushri aapne issue rajasthani launguage m gaya h or sabse jyada isme karuna or veer ras dono aate h. Thank u for such a good poem.

  10. Maharana mahan the or hamesha rahenge

    I love kanaiyalal ji poem

  11. Abhay Singh Rana

    jai hind jai rajputana
    mhara pyara purkha ne shat
    shat naman

    • जद भी राणा प्रताप री याद आवे है कन्हैया जी री कविता म्हारो कालजो भर जावे या सोचूं म्हे घणो के आबाली पिड्या कैयां राणा री महानता जाणेली यहां तो सारा का सारा जवान ही बालिवुड री नशा मे पुतगा माँ भारत रा पुतो उठो ओर जागो माँ भारती थांको प्यार मांगे है

  12. यह कविता पूरी नहीं है। और इसके बोल भी कही कही ग़लत है। यह रही पूरी कविता:

    अरे घास री रोटी ही , जद बन बिलावडो ले भाग्यो
    नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो
    अरे घास री रोटी ही

    हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
    मै पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
    जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै
    सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै
    अरे घास री रोटी ही

    पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी ने
    हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी ने
    महलां मे छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी
    सोना री थालियां, नीलम रा बाजोट बीना धरता कोनी
    अरे घास री रोटी ही

    ऐ आज झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ली सेजां पर
    ऐ आज फिरे भुख़ा तिरसा , हिन्दवाणी सुरज रा टाबर
    आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम वजर छाती
    आँख़्यां में आंसु भर बोल्याे , में लीख़स्युं अकबर ने पाती
    पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ रावल ऊंचो हियो लियां
    चितौड ख़ड्यो है मगरा में ,विकराल भूत सी लियां छियां
    अरे घास री रोटी ही

    मे झुकूं कियां है आण मने , कुल रा केसरिया बाना री
    मे बूज्जू कियां हूँ शेष लपट , आजादी रे परवाना री
    पण फेर अमर री सुण बुसकयां , राणा रो हिवडो भर आयो
    मे मानुं हूँ तिलीसी तन , सम्राट संदेशो कैवायो
    राणा रो कागद बाँच हुयो , अकबर रो सपनो सौ सांचो
    पण नैण करो बिश्वास नही ,जद बांच-बांच ने फिर बांच्यो
    अरे घास री रोटी ही

    कै आज हिमालो पिघल गयो , कै आज हुयो सुरज शीतल
    कै आज शेष रो सिर डोल्यो ,आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
    बस दूत ईशारो जा भाज्या , पिथल ने तुरन्त बुलावण ने
    किरणा रो पिथल आ पहुंच्यो ,ओ सांचो भरम मिटावण ने
    अरे घास री रोटी ही

    बीं वीर बांकूडो पिथल ने , रजपुती गौरव भारी हो
    वो क्षात्र धरम रो नेमी हो , राणा रो प्रेम पुजारी हो
    बैरयां रे मन रो कांटो हो , बिकाणो पुत्र करारो हो
    राठोङ रणा मे रह्तो हो , बस सागी तेज दुधारो हो
    अरे घास री रोटी ही

    आ बात बादशाह जाणे हो , घावां पर लूण लगावण ने
    पिथल ने तुरन्त बुलायो हो , राणा री हार बंचावण ने
    म्है बान्ध लियो है ,पिथल सुण, पिंजर मे जंगली शेर पकड
    ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
    अरे घास री रोटी ही

    मर डूब चुंलु भर पाणी मे , बस झुठा गाल बजावो हो
    प्रण टूट गयो ही राणा रो , तूं भाट बण्यो बिड्दावे हो
    मे आज बादशाह धरती रो , मेवाडी पाग पगां मे है
    अब बता मन,किण रजवट रो, रजपूती खून रगा मे है
    अरे घास री रोटी ही

    जद पिथल कागद ले देखी , राणा री सागी सेनाणी
    नीचै सुं धरती खीसक गयी, आँख़्या मे भर आयो पाणी
    पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सफा ही झुठी है
    राणा री पाग सदा उंची , राणा री आण अटूटी है
    अरे घास री रोटी ही

    ल्यो हुकम हुवे तो लिख पुछूं , राणा रे कागद रे खातर
    ले पूछ भल्या ही पिथल तू ,आ बात सही, बोल्यो अकबर
    म्है आज सुणी है, नाहरियां श्यालां रे सागे सोवे ला
    म्है आज सुणी है, सुरजडो बादल री ओट्यां ख़ोवेला
    म्है आज सुणी है, चातकडो धरती रो पाणी पीवे ला
    म्है आज सुणी है, हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवेला || म्है आज सुणी है, थका खसम, अब रांड हुवेली रजपूती
    म्है आज सुणी है, म्यानां मे तलवार रहवैला अब सुती
    तो म्हारो हिवडो कांपे है , मुछ्यां री मौड मरोड गयी
    पिथल ने राणा लिख़ भेजो , आ बात कठा तक गिणां सही.
    अरे घास री रोटी ही

    पिथल रा आख़र पढ्तां ही , राणा री आँख़्यां लाल हुई
    धिक्कार मने मै कायर हुं , नाहर री एक दकाल हुई
    हुँ भूख़ मरुँ ,हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
    हुँ भोर उजाला मे भट्कुं ,पण मन मै माँ री याद रहे
    हुँ रजपुतण रो जाेयो हुं , रजपुती करज चुकावुंला
    ओ शीष पडै , पण पाग़ नही ,पीढी रो मान हुंकावूं ला
    अरे घास री रोटी ही

    पिथल के ख़िमता बादल री,जो रोकै सुर्य उगाली ने
    सिंहा री हातल सह लेवै, वा कूंख मिली कद स्याली ने
    धरती रो पाणी पीवे ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
    कुकर री जूण जीवेला हाथी री बात सुणी कोनी ||
    आ हाथां मे तलवार थकां कुण रांड केवे है रजपूती
    म्यानां रे बदलै बैरयां री छातां मे रेवेला सुती ||
    मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ मे चम – चम चमकेलो
    कडक री उठ्ती ताना पर, पग पग पर ख़ांडो ख़ड्कैलो
    राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
    हुँ अथक लडुंला अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूला
    जद राणा रो शंदेष गयो पिथल री छाती दूणी ही
    हिन्दवाणी सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही

  13. Bahut hi shandar rachana… Kripya puri rachana prakashit kare

  14. विकास तिवारी

    राना व चेतक की गाथा, हर हिंदुस्तानी याद रखे ।
    निज का सर्वस्व लुटाकर वे, मेवाड़ी शान आजाद रखे ।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *