हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के – कवि प्रदीप

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के – कवि प्रदीप

After decades of freedom struggle and innumerable sacrifices, the country finally attained freedom in 1947. In this poem the old guards pass the baton to younger generation and instruct them to carry on with great care and fortitude so that the freedom won by great efforts of several generations is sustained and the country moves on the path to progress. This poem by Pradeep moistened the eyes of a generation of Indians, especially the last stanza that exhorts the young Indians not to be complacent in the present glory but work hard to take a sky high leap of progress. The poem was also used as a song in the old hit Hindi film Jagriti – Rajiv Krishna Saxena

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के

पासे सभी उलट गए दुशमन कि चाल के
अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के
मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के

हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

दुनियां के दांव पेंच से रखना न वास्ता
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता
भटका न दे कोई तुम्हें धोके में डाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियां
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियां
तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो
अब वक्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो
उट्ठो छलांग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

~ कवि प्रदीप

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