खग उड़ते रहना जीवन भर – गोपाल दस नीरज

खग उड़ते रहना जीवन भर – गोपाल दस नीरज

In this poem, Neeraj exhorts us to keep making efforts and not lose hope. These lines are very similar to what Lord Krishna told Arjuna in Kurukshetra (Geeta Chapter 2, shlokas 35, 36 and 37) – Rajiv Krishna Saxena

खग उड़ते रहना जीवन भर

खग! उड़ते रहना जीवन भर!
भूल गया है तू अपना पथ‚
और नहीं पंखों में भी गति‚
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे‚ मौत से भी है बदतर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

मत डर प्रलय झकोरों से तू‚
बढ़ आशा हलकोरों से तू‚
क्षण में यह अरि–दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

यदि तू लौट पड़ेगा थक कर‚
अंधड़ काल बवंडर से डर‚
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस–हँस कर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

और मिट गया चलते चलते‚
मंजिल पथ तय करते करते‚
तेरी खाक चढ़ाएगा जग उन्नत भाल और आंखों पर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

∼ गोपाल दास नीरज

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