टूटने का सुख – भवानी प्रसाद मिश्र

टूटने का सुख – भवानी प्रसाद मिश्र

So much happens in life but to be detached is to be liberated. To know that every thing ends but be at peace with it. Here is a lovely poem of Bhawani Prasad Mishra. Read on Rajiv Krishna Saxena

टूटने का सुख

बहुत प्यारे बन्धनों को आज झटका लग रहा है,
टूट जायेंगे कि मुझ को आज खटका लग रहा है,
आज आशाएं कभी भी चूर होने जा रही हैं,
और कलियां बिन खिले कुछ धूल  होने जा रही हैं,
बिना इच्छा, मन बिना,
आज हर बंधन बिना,
इस दिशा से उस दिशा तक छूटने का सुख!
टूटने का सुख।

शरद का बादल कि जैसे उड़ चले रसहीन कोई,
किसी को आशा नहीं जिससे कि सो यशहीन कोई,
नील नभ में सिर्फ उड़ कर बिखर जाना भाग जिसका,
अस्त होने के क्षणों में है कि हाय सुहाग जिस का,
बिना पानी, बिना वाणी,
है विरस जिसकी कहानी,
सूर्य कर से किन्तु किस्मत फूटने का सुख!
टूटने का सुख।

फूल श्लथ -बंधन हुआ, पीला पड़ा, टपका कि टूटा,
तीर चढ़ कर चाप पर, सीधा हुआ खिंच कर कि छूटा,
ये किसी निश्चित नियम, क्रम कि सरासर सीढ़ियां हैं,
पाँव रख कर बढ़ रही जिस पर कि अपनी पीढियां हैं,
बिना सीढ़ी के चढ़ेंगे तीर के जैसे बढ़ेंगे,
इसलिए इन सीढ़ियों के फूटने का सुख!
टूटने का सुख।

∼ भवानी प्रसाद मिश्र

लिंक्स:

 

Check Also

अंधा युग युद्धान्त से प्रभु की मृत्यु तक

अंधा युग (शाप पाने से प्रभु मृत्यु तक) – धर्मवीर भारती

The great war of Mahabharata left a permanent scar on the Indian psyche. The politics, …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *