गया साल - राजीव कृष्ण सक्सेना

गया साल – राजीव कृष्ण सक्सेना

End of the year 2016 was rather unusual. Demonetization of high value notes brought tough times for all. However, common people in general were convinced that these hard times would usher in a better future. There were lots of expectations from the emerging leadership of Modi Ji! Here are few lines to that effect. Rajiv Krishna Saxena

गया साल

यूँ तो हर साल गुजर जाता है
अबकी कुछ बात ही निराली है
कुछ गए दिन बहुत कठिन गुजरे
मन मुरादों की जेब खाली है।

कि एक फूल जिसका इंतजार सबको था
उसकी पहली कली है डाली पर
दिल में कुछ अजब सी उमंगें हैं
और नजरें सभी की माली पर

कि एक फूल जिसका इंतजार सबको था
उसकी खुशबू वतन को चूमेगी
दिल में विश्वास की किरण होगी
आँख कुछ स्वप्न देख झूमेगी

कि एक फूल जिसका इंतजार सबको था
उसकी खुशबू हमें जगाएगी
और अहसास यह भी होता है
अब तो यह मुल्क उठ खड़ा होगा
सबके मन की दुआ कुबूलेगा
सबकी उम्मीद पर खरा होगा।

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

लिंक्स:

Copy Right:  This poem or any part of it, cannot be used in any form and in any kind of media, without the written permission from the author Prof. Rajiv K Saxena. Legal action would be taken if an unauthorized use of this material is found. For permission enquiries may be sent to rajivksaxena@gmail.com or admin@geeta-kavita.com.

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