Kumar Vishwas on Kejriwal
तुम, कि विजय के एक मात्र पर्याय–पुरुष थे, आज स्वयँ से ही हारे हो, डर लगता है!

डर लगता है! – कुमार विश्वास

Kumar Vishwas is a well-known contemporary Hindi poet. He was also a leader of AAP party of Delhi. His following poem seems to express his disillusion with the on-goings in AAP party lead by Arvind Kejriwal.  Poem itself is very good and reminded me of another nice poem on Geeta-Kavita written by Chandrasen Virat. That poem Tum kahbi the surya (click here to read) and the present one both talk about falling from grace of erstwhile tall personalities. Rajiv Krishna Saxena

डर लगता है!

हर पल के गुंजन की स्वर–लय–ताल तुम्हीं थे,
इतना अधिक मौन धारे हो, डर लगता है!
तुम, कि नवल–गति अंतर के उल्लास–नृत्य थे,
इतना अधिक हृदय मारे हो, डर लगता है!

तुमको छू कर दसों दिशाएं सूरज को लेने जाती थीं,
और तुम्हारी प्रतिश्रुतियों पर बांसुरियाँ विहाग गाती थीं
तुम, कि हिमालय जैसे, अचल रहे जीवन भर,
अब इतने पारे–पारे हो, डर लगता है!

तुम तक आकर दृष्टि–दृष्टि की प्रश्नमयी जड़ता घटती थी,
तुम्हें पूछ कर महासृष्टि की हर बैकुंठ कृपा बँटती थी
तुम, कि विजय के एक मात्र पर्याय–पुरुष थे,
आज स्वयँ से ही हारे हो, डर लगता है!

~ कुमार विश्वास

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