India was essentially ruled by Congress for almost 6 decades after the independence in 1947. People became used to tardy progress, lack luster growth and in general being stuck with a leadership that was not bothered about improving the standard of living of poor Indians with any sense of urgency. Suddenly, Narendra Modi upstaged Congress in 2014 and the Nations sensed a fresh breeze of progress and found new hope. Rajiv Krishna Saxena
कांग्रेस बनाम मोदीः एक युगपरिवर्तन
एक लंबे स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तब देश की राजनीतिक सोच कुछ आदर्शवादी थी। सारे देश की निगाहें जवाहरलाल नेहरू पर टिकी थीं और कह सकते हैं कि भारत की सोच वही मानी जाती थी जो कि नेहरू की थी। नेहरू युग पुरुष थे, जग में विख्यात थे, और जनता का उनके नेतृत्व में बहुत विश्वास था। नेहरू स्वयं कहते थे कि उनकी शिक्षा अंग्रेजों जैसी थी, सोच अंतर्राष्ट्रीय और रहन सहन मुसलमानी था। हिंदू तो वे मात्र जन्म के संयोग से थे। उनका व्यक्तित्व अंतर्राष्ट्रीय अधिक था और विशुद्ध भारतीय कम।ऐसा प्रतीत होता था कि उनके निर्णय अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण एवं आदर्शवादिता से ज्यादा प्रभावित होते थे और राष्ट्र का हित उसमें अक्सर उपेक्षित रह जाता था। यहीं से उनकी और देश के नागरिकों की सोच में अंतर के बीज पड़ गए थे।पर नेहरू का व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी।
भारत का बटवारा हिंदू और मुसलमान कौमों का बटवारा था। पाकिस्तान नें स्वयं को इस्लामिक देश घोषित किया पर भारत नें स्वयं को धर्मनिर्पेक्ष घोषित किया। यह हमारे आदर्शवाद का एक बड़ा उदाहरण है। भारत में करोड़ो मुसलमान रह गए और जनसंख्या में उनका अनुपात निरंतर बढ रहा है (1950 में 9.8 प्रतिशत और अब 15 प्रतिशत) जिससे सिद्ध होता है कि भारत के मुसलमान कौम फल फूल रही है और यह बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक सहिष्णुता और उदारवादिता का जीता जागता प्रमाण है। इसके विपरीत पाकिस्तान और बंगला देश में जो हिंदू रह गए उनका अनुपात निरंतर कम हो रहा है और तब के बीस प्रतिशत से घट कर अब मत्र एक प्रतिशत रह गया है। कौन जिम्मेंवार है? नेहरू के आदर्शवाद का ही नतीजा था कि कश्मीर की समस्या आज मुँह बाए खड़ी है और सुलझने का नाम ही नही लेती। जब भारत को यू एन सैक्योरिटी काउंसिल की सीट मिलने का मौका था तब नेहरू ने रूस के दबाव में चीन को वह सीट दिलाने का समर्थन किया। पर फिर चीन ने हम पर ही आक्रमण कर के हमारी पीठ में छुरा भोंकने का काम किया। यह विदेश नीति में अपरिपक्वता का सजग उदाहरण है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में जिस पैनी दृष्टि दूरगामी सोच और स्वहित सुनिश्चित करने की दरकार होती है ऐसा प्रतीत होता है कि नेहरू में उसकी कमी थी। एक सशक्त राजनेता से अपेक्षित होता है कि वह राष्ट्रहित की दृष्टि से समस्याओं का समाधान निकालें। ऐसी विचार बुद्धि सरदार पटेल में थी जो कि वास्तव में एक राष्ट्रवादी नेता थे जिनकी सोच में भारत का हित पहले आता था। और अन्य पहलू बाद में। इसी लिये हम अक्सर सुनते हैं कि अगर सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो बहुत सी टाल सकने वाली समस्याओं से हम मुक्त रह सकते थे।
पर इतिहास को तो अब हम बदल नहीं सकते। जो हुआ सो हुआ। ऐसा भी नहीं है कि नेहरू के और काँग्रेस शासन में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। देश में संस्थाओं और संस्थानों का ढांचा मजबूत हुआ। उच्च दर्जे के शिक्षण संस्थान जैसे कि आई आई टी, ऐम्स, सी एस आई आर, ऐटौमिक एनर्जी एवं इंडियन स्पेस आरगिनाईजेशन जैसे संस्थान बने जिन्होंने भारत के विकास में अमूल्य योगदान दिया है। ऊद्योगों में स्वाबलंबन का मूल विचार भी नेहरू जी का था। इससे लाभ भी हुए जैसे कि हमने स्टील और अन्य मिल्स लगाईं और अपने पैरों पर खड़ा होते का प्रयत्न किया। ग्रीन रिवोल्यूशन हुआ और अन्न की समस्या काफी हद तक दूर हुई। पर मात्र स्वाबलंबन के विचार से हट कर अगर हम अन्य राष्ट्रों से सहयोग करते तो शायद हम कहीं ज्यादा तेजी से विकास कर सकते थे और देश को अब तक गरीबी से मुक्त कर सकते थे।
माहौल कुछ ऐसा था कि देश मे गरीबी और पिछड़ापन सुधरने के लिये जिस सैन्स आफ अर्जेंसी की दरकार थी वह नेहरू और इंदिरा गांधी के कांग्रेस शासन में थी ही नहीं। दुनियाँ तेजी से तरक्की कर रही थी पर हम धीरे धीरे मंथर गति से चले। परिणाम स्वरूप कांग्रेस के साठ साल के शासन के बाद हमने पाया कि गिलास थोड़ा सा ही भरा है पर अधिकतर खाली है। इसका एक उदाहरण लेते हैं। वर्ष 1960 में चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 100 डालर थी जब की हमारी 200 डालर थी। यानि की चीन का हाल हमसे कहीं बदतर था। पर चीन ने तेजी से तरक्की की और आज उनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 3000 डालर है जब की हमारी मात्र 800 डालर है (चित्र देखें)। चीन नें इस कालखंड में प्रति व्यक्ति जीडीपी को 30 गुना बढ़ाया जब की हमने मात्र चार गुना। इन साठ सालों में राष्ट्र की तीन पीढ़ियाँ निकल गईं। तीन पीढ़ियों नें गरीबी और बदहाली का जीवन बिताया इसका उत्तरदाइत्व कौन लेगा?
हमारी लीडरशिप या तो इनकम्पीटैंट थी या धीमी गति से प्रगति में ही उनका लाभ था। कांग्रेस की कार्यशैली देखें तो उनके कुछ उसूल साफ हो जाते हैं। पहली तो यह की चाहे रिपोर्ट कार्ड कितना भी खराब क्यों न हो, किसी भी प्रकार नेहरू गांधी परिवार की लीडरशिप कायम रखो। यह इसलिये कि अगर वे शीर्ष नेतृत्व में न हुए तो कांग्रेस छिन्न भिन्न हो जाएगी और पार्टी के अन्य लीडर आपस में ही लड़ मरेंगे। नेहरू गांधी परिवार को शीर्ष में रखना इसलिये कांग्रेस की मजबूरी है और एक तरह की सर्वाइवल इंस्टिंक्ट है। दूसरी बात यह की नेहरू गांधी परिवार को शीर्ष में रख कर उनके संरक्षण में फिर धड़ल्ले से लूट मार में जूट जाओ क्योंकि लीडरशिप आंखें मूंदे रहेगी। फिर चाहे देश जाए भाड़ में। यही हमारी अत्यंत धीमी प्रगति का मूल कारण रहा।
यह सत्य अब भारत की जनता को धीरे धीरे समझ आ रहा है। उन्हें समझ आ रहा है कि कई दशकों से उनका उल्लू बनाया जा रहा था। कांग्रेस का मूल मंत्र है कि हमें वोट देते रहो और जो थोड़ी बहुत प्रगति है उसमें संतुष्ट रहो। कांग्रेस ने अपने प्लान में सफल होने के लिये एक और युक्ति अपनाई। वह थी मुसलमानों का वोट बैंक की तरह प्रयोग करना। बहुसंख्यक हिंदुओं का हित की उन्होंने उपेक्षा की और अल्पसंख्यक मुसलमानों का तुष्टिकरण किया। शाह बानो का केस इसका सशक्त उदाहरण है। उनकी सोच थी कि हिंदू वोट कहां जाएगा? हद से हद हमारे और विपक्ष में बराबर बंट जाएगा। फिर जिधर मुसलमान समुदाए वोट करेंगे वही जीतेगा। तो हिंदुओं को बांट दो और मुसलमानों को साथ लो और इस विधि से लगातार राज्य करो। यह तरकीब लगभग साठ सालों तक कामयाब रही। इसकी तोड़ अंततः 2014 में नरेंद्र मोदी ने ढूंढी और इसके अप्रत्याशित परिणाम निकले।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि हिंदू हों या मुसलमान, किसी का भी राजनीतिक तुष्टिकरण नहीं किया जएगा। सब बराबर के भारतीय नगरिका होंगे। उन्होंने दशकों से उपेक्षित हिंदुओं के मुद्दों को भी उठाया, जैसे कि राम जन्मभूमि इत्यादि। इसके साथ ही नारा दिया सबका साथ सबका विकास। विश्व में भारत के स्थान को लेकर मोदी जी ने एक निराली सोच दी। भारत एक महान और बहुत बड़ा देश है और हम संपूर्ण विश्व के देशों से अपने राष्ट्र हित को सतत ध्यान में रख कर, बराबरी का वर्ताव करेंगे। विश्व ने देखा कि अंततः भारत का नेतृत्व एक शक्तिशाली, लोकप्रिय और मात्र आदर्शवाद का ढिंढोरा न पीटने वाले नेता के पास है। विश्व ने मोदी को कंधों पर उठाया। वे जहाँ भी गए मोदी मोदी के नारों से गगन गूंज उठा। भारतीयों नें ऐसा शक्तिशाली आधुनिक सोचा वाला नेता कभी नहीं देखा था सो नरेंद्र मोदी को अभूतपूर्व समर्थन मिला।
कांग्रेस को मोदी के उभरने से कई परेशानियाँ हुईं। लम्बे समय तक शासन चलाने के बाद उन्हें लगता था कि उनका कोई विकल्प ही नहीं था। परोक्ष रूप से उन्हें लगता था की शासन करने का अधिकार उनका ही था और जब जनता ने नेहरू गांधी परिवार को एक गरीब परिवार से और पिछड़े वर्ग से उठे मोदी के समक्ष नकार दिया तो कांग्रेस को यकायक समझ ही नहीं आया कि यह आखिर हो क्या गया। दशकों से बंदर बांट रूपी जो घोटाले निर्विघ्न चल रहे थे अचानक उनमें व्यवधान पड़ गया। वोट बैंक की राजनीति पर कुठाराघाट हुआ। जनता ने राजनीति का एक नया रूप देखा।
दशकों से चलता आया अल्प संख्यकों का तुष्टिकरण खत्म हुआ तो परिणामस्वरूप अरसे से दबे हुए बहुत से हिंदू मुद्दे भी बाहर आए। इन नये मुखरित मुद्दों में से कुछ एक का हिंदुओं का एक बड़ा पढ़ा लिखा वर्ग भी प्रखर समर्थक नहीं है और यह वर्ग चाहता है कि विकास ही प्रमुख लक्ष्य बना रहे और इस लक्ष्य से डिगा न जाए। पर यहां समझना होगा कि जो हिंदू मुद्दे उभरे हैं उनका मूल कारण कांग्रेस द्वारा दशकों की उपेक्षा ही है। ऐसे में इन मुद्दों का उभरना एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया ही है जोकि धीरे धीरे ही समप्त होगी। मोदी जी इसे भली भांति समझते हैं पर उन्हें सभी को साथ लेकर चलना है। उनकी प्र्रतिक्रिया इसी लिये नपी तुली होती है।
राज्यों में कांग्रेस की करारी हारों का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है। पर कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन को तैयार नहीं है। सरवाइवल इन्सटिंक्ट के चलते वे नेहरू गांधी परिवार को छोड़ने को कतई राजी नहीं हैं और राहुल गांधी जो कि जग जाहिर है कि अनिच्छा से राजनीति में हैं उन्हें ही घेर घोट कर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। सच तो यह है कि नेहरू गांधी परिवार का विकल्प कांग्रेस के पास है ही नहीं। पर कांग्रेस को यह तो समझ आ गया है कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति अब चलने वाली नहीं है। इसीलिये वे अब अपने आप को हिंदू के रूप में पेश कर रहे हैं। राहुल गांधी एक जनेऊधारी और शिवभक्त हिंदू बन गए हैं। मुसलमानों का दामन वे अब छोड़ रहे हैं। लगता है कि उन्हें ज्ञात नहीं कि ऐसा करने पर वे भाजपा की बी टीम के रूप में ही उभरेंगे। पर यह सब महात्वपूर्ण नहीं है। महात्वपूर्ण तो देश का विकास और आम जनता की प्रगति है। इस क्षेत्र में मोदी जी की सरकार ने अल्प काल में ही एक मूल भूत परिवर्तन किया है। इनमें से कुछ जो एकदम मस्तिष्क में आते हैं वह हैं:
- 30 करोड़ जन धन खाते खोलना जिससे गरीब देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ें
- स्वच्छता मिशन, करोड़ो टॅएलेट्स का निर्माण
- किसानों को क्रेडिट कार्ड, यूरिया का नीमकरण, फसल बीमा, भारत व्यापी ई˗मर्किट, भारत के हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने वाली प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना,
- हर घर बिजली की आपूर्ति का लक्ष्य 2019 तक, सभी को मकान का लक्ष्य 2021 तक
- महिलाओं के लिये 5 करोड़ नये रसोई कुकिंग गैस कनैक्शन, गर्भवति महिलाओं को 6000 रुपए का स्वस्थ भोजन अनुदान,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, और हाल ही में तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति - इन्फ्रास्ट्रक्चर को सशक्त बढ़ावा, दुगनी तिगनी गति से राजमार्ग विस्तार, सौ नए एयरपोर्ट, बुलेट ट्रेन और सोलर एनर्जी जैसी तकन्ीकों को बढ़ावा
- नोटबंदी एवं जीएसटी जैसे सहासिक कदम जो भारत को एक कम˗कैश और आई टी आधारित आधुनिक अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ेंगे
- विदेश नीति का नया रूप जिससे भारत एक अत्यंत महात्वपूर्ण अंतरर्राष्ट्रीय महाशक्ति के रूप में उभर रहा है
यह कुछ कार्य हैं जोकि एकदम याद आते हैं। और भी कितने ही होंगे। कांग्रेसी कहते हैं कि मोदी ने कुछ नहीं किया! महान आशचर्य है! पर जो देखना नहीं चाहते वे कैसे देखेंगे? जनता मूर्ख नहीं है। सब देखती सुनती है। हर क्षेत्र में परफार्मेंस के कारण ही मोदी जी को राज्यों में एक के बाद एक सफलताएं मिल रही हैं। 2019 में फिर से लोक सभा के चुनाव हैं। देश के सामने विकाल्प होगा कि भ्रष्ट परिवारवाद में लौटना या एक नए भारत के निर्माण में मोदी जी का हाथ बटाना। इनमें से एक को चुनना है। आप क्या चुनेंगे?
~ राजीव कृष्ण सक्सेना
दिसंबर 29 2017
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