किसान आत्महत्याओं की वास्तविकता

किसान आत्महत्याओं की वास्तविकता – राजीव कृष्ण सक्सेना

Farmer’s suicide issue is a burning one in India. Opposition parties always severely criticize the party in power, whosoever it is, on this issue. Fact of the matter as discussed in this short article is that Indian farmers commit suicide at a much lower rate that other Indian citizens and from farmers in advanced countries like USA. The idea of this article is not to condone the suicide by Indian farmers, but is to point out that the issue has become more of a political scoring point rather than a genuine issue of the farmers. No society howsoever affluent can ever completely stop suicides by its citizens, and Indian farmers like any other group of workers, are not an exception in this regard. If anything, suicide rate amongst Indian farmers is much smaller than other groups of citizens. Rajiv Krishna Saxena

किसान आत्महत्याओं की वास्तविकता

भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 12000 किसान आत्महत्या करते हैं। मतलब की हर महीने औसतन 1000 किसान आत्महत्या करते हैं। विपक्ष हमेशा सरकार को इस मुद्दे पर घेरता है जब की सच तो यह है कि किसानों की आत्महत्या के यह आंकड़े वही रहते हैं। सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न हो, सरकार बदलने से यह आंकड़े नहीं बदलते। कोई सरकार आखिर क्यों चाहेगी कि उनके राज्य में किसान या कोई भी आत्महत्या करे? सभी सरकारें किसानों के कर्ज माफ कर रहीं हैं जिससे वे किसान विरोधी न दिखें। फिर भी आत्महत्याएं कम नहीं होतीं।यह एक बड़ी समस्या लगती है और अब यहा एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। यह सच है कि अगर एक भी व्यक्ति आत्महत्या करे तो वह शोक का विषय है। और यहाँ तो लगभग तीन किसान हर दिन आत्महत्या कर रहे हैं। किसी भी सरकार को घेरने के लिये यह मुद्दा पर्यप्त है। कितनी निकम्मी सरकार है! इसके राज्य में इतने किसान आत्महत्या कर रहे हैं! सरकार काग्र्रेस की हो या बीजेपी की, किसानों की आत्महत्या का मामला वहीं का वहीं रहता है।

किसान आत्महत्या करते क्यों हैं? इसका उत्तर ऐसा लगता है कि सबको जग ज़ाहिर है। वे खेती के लिये कर्जा लेते हैं, फसल किन्हीं कारणों से बर्बाद हो जाती है, वे कर्जा अदा नहीं कर पाते हैं। कर्जा बढ़ता जाता है और ना चुका पाने की स्थिति में वे आत्महत्या कर लेते हैं। पर क्या यही कारण है? अगर यही कारण है तो आप यह अपेक्षा करेंगे कि संपन्न देशों में जहां कर्जे की ऐसी स्थिति पहुँचने की संभवना कम ही होती है, वहाँ किसान आत्महत्या नहीं करते होंगे। हम तो यह भी अपेक्षा करेंगे कि आर्थिक काारणों के आपेक्षिक अभाव में संपन्न देशों में आत्महत्या होती ही नहीं होगी या कि बहुत कम होती होगी। आपको जान कर अचरज होगा कि भारत और अमरीका में आत्महत्या की दर लगभग बराबर ही है। प्र्रति 100000 (एक लाख) जनसंख्या में प्र्रति वर्ष कितने आदमी आत्महत्या करते हैं यही आत्महत्या की दर कहलाती है। संलग्न तालिका में कुछ देशों की आत्महत्या की दरें दी गई हैं। यह आंकड़े विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) के हैं जो कि भिन्न भिन्न देश स्वयं ही मोहय्या कराते हैं। यह कितने ठीक हैं कितने गलत यह तो चर्चा का विषय है पर हमारे तुलनात्मक विवेचन के लिये ये पर्याप्त हैं।

Suicide Rate

इन आंकड़ों के अनुसार भारत में आत्महत्या की दर लगभग 16 है। यानी की प्र्रत्येक एक लाख व्यक्तियों में से 16 लोग प्रति वर्ष आत्महत्या करते हैं। वैसे कई अन्य सूत्रों के अनुसार से यह दर लगभग 10 के आसपास है। तालिका के आकड़ों के अनुसार भारत में आत्महत्या की दर श्रीलंका से आधी है जब की श्रीलंका की प्र्रतिव्यक्ति वार्षिक आय हमसे लगभग दुगनी है। इसी तरह दुनियाँ के सबसे विपन्न कहे जाने वाले देश ‘हेटी’ में आत्महत्या की दर अमरीका और जापान की दरों से कम है। इन आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि आमदनी का आत्महत्या की दर से कोई लेना देना नहीं है। फिर प्र्रश्न उठता है कि क्या आत्महत्या की दर इस बात पर निर्भर करती है कि आदमी काम क्या करता है? आइये इस प्रसन का उत्तर ढूंढें।

मुझे विकीपीडिया में अमरीक में विभिन्न कार्य करने वालों में आत्महत्या की दरों के आँकड़े मिले। इस संलग्न तालिका जो कि अंग्रेजी में है, इसे देखिये। अमरीकी समाज में औसत आत्महत्या की दर लगभग 12 प्रति लाख प्रति वर्ष है। पर कृषी कर्मियों एवं मछली पालकों में यह दर सात गुना अधिक है, यानी की यह दर 84.5 है। शिक्षा एवं पुस्तकालय कर्मियों में आत्महत्या की दर सबसे कम यानी की 7.5 है। अमरीका में कृषकों में आत्महत्या की दर इतनी अधिक क्यों है यह खोज का विषय है। टाइम्स आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में किसानों की आत्महत्याएं पूरे देश मे होने वाली आत्महत्याओं की लगभग 10 प्रतिशत हैं। भारतीय जनगणना के आँकड़ों के अनुसार भारत की लगभग 50 प्र्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है। सोचने की बात यह है कि यदि 50 प्र्रतिशत जनता किसानी से जुड़ी है तो इस वर्ग में आत्महत्याएं भी देश की 50 प्रतिशत होनी चाहिये। पर किसानों की आत्महत्याएं देश में होने वाली आत्महत्याओं की मात्र 10 प्रतिशत है ना कि 50 प्रतिशत। इन आंकड़ों से यह साफ है कि भारतीय किसानों में आत्महत्या की दर औसत राष्ट्रीय दर से पांच गुना कम है। अगर यह कमी आंकड़ों में तबदील की जाए तो भारतीय किसानों में आत्महत्या की दर लगभग 2 होगी। कृषक परिवारों में अगर आत्महत्या की दर 2 है तो बाकी भारतीय नागरिकों में यह दर लगभग 5 से 10 गुना अधिक होगी। इसका मतलब तो साफ यही है कि किसानों की अपेक्षा कहीं अधिक आत्महत्याएं भारत में उन लोगों में होती हैं जो कि किसान नहीं हैं। यह आंकड़े भारतीय किसानों की आंतरिक शक्ति को दर्शाते हैं। वे मौसम की, फसलों के कीटों की, अथवा आर्थिक इत्यादी की परेशानियों से कहीं अधिक लोहा लेते हैं पर अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं कम आत्महत्याएं करते हैं। फिर किसानों की आत्महत्याएं ही मुद्दा क्यों बनती है। अखबारों में हम कभी नहीं पढ़ते कि छात्रों में या कि दुकानदारों या कि अन्य वर्गों में कितनी आत्महत्याएं होती हैं?

उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय किसानों में अन्य नागरिकों की तुलना में आत्महत्याएं बहुत कम हैं। फिर भी किसानों की आत्महत्या का मामला मीडिया में छाया रहता है। तो क्या हम समझ लें कि किसानों की आत्महत्याओं को भारत में राजनीतिक कारणों से बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है? अगर हम आंकड़ों को ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि अमरीकी किसानों में आत्महत्या की दर भारतीय किसानों की आत्महत्या दर से करीब चालीस गुना (84 के मुकाबल 2) ज्यादा है। यह तब है जब की अमरीकी किसान भारतीय किसानों की अपेक्षा कहीं अधिक संपन्न हैं। मीडिया की रिपोर्टिंग से तो लगता है कि कर्ज की समस्या ही मूलतः भारतीय किसानों में आत्महत्या का मूल कारण है। आंकड़े इस निश्कर्ष का समर्थन नहीं करते ऐसा प्र्रतीत होता है। इस विषय पर शोध की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि यह समस्या राजनीतिक अधिक है आर्थिक कम। यह सत्य है कि एक भी आत्महत्या हो तो वह अच्छी बात नहीं है। पर आत्महत्या करना एक बहुत व्यक्तिगत निर्णय होता है जिसमें देश और समाज का दखल नहीं होता।जो व्यक्ति भी आत्महत्या करता है उसका कारण एक गहरी मायूसी और डिप्र्रेशन में निहित होता है। इस मायूसी व डिप्र्रेशन के कारण कई प्र्रकार के हो सकते हैं। पारिवारिक कलह, झगड़े, मन मुटाव, असफलताएँ, हीन भावनाएँ, बीमारी, बेबसी, इत्यादी इत्यादी। कर्ज भी इनमें से एक कारण हो सकता है। पर कर्ज ही एक मात्र कारण नहीं हो सकता। यह कहना कि जो भी किसान आत्महत्या करता है वह कर्ज के कारण से करता है, यह ठीक नहीं है। सरकारें य समाज कितना भी कुछ करें, कोई भी कदम उठाएं, आत्महत्या की समस्या का सामूल नाश नहीं कर सकते।

यह सच है कि किसानों के लिये इस देश को और बहुत कुछ करना चाहिये। वे अन्नदाता हैं और पूरी शक्ति से देशवासियों के लिये खाद्ययान्न का उत्पादन करते हैं। वे स्वयं विपन्न रहें यह खेद की बात है। उन्हें सभी सुविधाएं प्र्रदान करना देश का फर्ज है। पर किसानों में आत्महत्या की समस्या को बढ़ा चढ़ा कर राजनीतिक उद्देश्य से पेश करना एवं भुनाना ठीक नहीं है।

References:

  1. Suicide rates in different countries:
    https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_suicide_rate
  2. Suicide rates in different kinds of workers in USA: https://www.cdc.gov/mmwr/volumes/65/wr/mm6525a1.htm
  3. Farmer’s suicide in India
    https://en.wikipedia.org/wiki/Farmers%27_suicides_in_India

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

जून 15 2017

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