एम्सटरडैम की यात्रा

एम्सटरडैम की यात्रा – राजीव कृष्ण सक्सेना

Netherlands is a beautiful country. Cool and crisp, clean and efficient. While I often visit the country as my daughter lives there, I recently visited the Amsterdam for a couple of days. I have written this article to summarize my impression of this city and the Dutch people. Rajiv Krishna Saxena

एम्सटरडैम की यात्रा

नीदरलैंड यूरोप के समृद्ध राष्ट्रों में से है जिसकी राजधानी है एम्सटरडैम।पूरे नीदरलैंड की आबादी लगभग 168 लाख है और राजधानी एम्सटरडैम की आबादी लगभग 8 लाख।इस शहर में ही एक साल में लगभग डेढ़ करोड़ पर्यटक आते हैं जब कि पूरे भारत में एक साल में इससे आधे ही पर्यटक आते हैं।इसी से आप अंदाज लगा सकते हैं कि एम्सटरडैम पर्यटकों के लिये कितना बड़ा आकर्षण केंद्र है। पश्चिमी देशों के मुकाबले भी नीदरलैंड और एम्सटरडैम का एक अलग ही व्यक्तित्व है जो कि पर्यटकों के लिये एक मैगनेट का काम करता है।

एम्सटरडैम का स्कीपॉल एयरपोर्ट निराला है। उतरते ही इसके रंग (नीला, ऑरेंज और ग्रे) आपको मोह लेंगे। एयरपोर्ट पर सभी सुविधाएॅ हैं और इसके अंदर की बड़ा ट्रेन स्टेशन है जहां से नीदरलैंड के भिन्न भिन्न शहरों के लिये ट्रेन पकड़ी जा सकती है। स्कीपॉल एयरपोर्ट से एम्सटरडैम सैंट्रल स्टेशन करीब 15 मिनट में पहुँचा जा सकता है। सैंट्रल स्टेशन के बाहर से हॉप–आन–हॉप–ऑफ (Ho Ho, यनि की होहो) बस एवं नावें मिलती हैं जिनसे आप पूरे एम्सटरडैम की सैर कर सकते है। एम्सटरडैम में नहरों का जाल बिछा है और सड़कें इन नहरों के साथ साथ चलती हैं। सड़कों पर होहो डबल–डैकर बसें एक विषेश रूट पर हर 15 मिनट में रवाना होती हैं और अलग अलग दर्शनीय स्थलों पर रुकती हैं। आप किसी भी स्टाप पर उतर सकते हैं और वह स्थल देख कर फिर से होहो बस पर दूसरे स्थलों पर जा सकते हैं। इसी तरह नहरों में होहो क्रूज नावें भी चलती हैं। होहो बसों और नावों में आप को हैड फोन दिये जाते हैं जिस पर अंग्रजी में लगातार विवरण चलता रहता है जिसे आपको नगर और दर्शनीय स्थलों की जानकारी मिलती रहती है। ऐसी होहो बसें अब विश्व के कई प्रमुख शहरों में चलती है और पर्यटकों को इनसे बहुत सुविधा होती है। कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली में भी होहो सेवा आरंभ की गई है।

एम्सटरडैम सैंट्रल स्टेशन पर हम सुबह के 10 बजे पहुँचे। शहर के बीच हमने एक होटल बुक कराया हुआ था जहाँ स्टेशन से 15 मिनट में पैदल पहुँचा जा सकता था। सामान हमारे पास कम था सो हमने सोचा क्यों न पैदल चल कर शहर का पहला नजारा लिया जाए। नक्शा हमारे पास था पर फिर भी सड़कें कुछ ऐसी घूमा फिरा कर थीं कि रस्ता ढूंढना आसान न था। फिर रस्ता पूछने में परेशानी यह थी कि लोग डच बोलते थे और कई लोग खुद ही पर्यटक थे जिन्हें जानकारी नहीं थी। खैर पूछताछ करते हुए होटल पहुँच गए। यह होटल विषेश तरह का था जो कि एक घर में बनाया गया था औ इसमें मात्र 6 कमरे थे और एक कर्मचारी (मूल निवासी घाना) जो कि पीर–बवर्ची–भिश्ती–खर सभी था। हमें कमरे की चाभी दी गई जिससे होटल का मुख्य दरवाज़ा भी खुलता था। बताया गया कि अगर आप रात को वापस आएं तो खुद ही दरवाज़ा खोल कर अंदर आ जाएं क्योंकि कोई कर्मचारी रात को नहीं होगा। ऐसे होटलों के बारे में मैंने पढ़ा था मगर ऐसी जगह रहने का मेरा पहला मौका था। एम्सटरडैम में ऐसे होटल बहुत हैं।

 

सामान कमरे में रख कर हम घूमने चल दिये। होहो बस और नाव स्टाप होटल से 10 मिनट की दूरी पर था। 24 घंटों का बस और नाव का मिलाजुला टिकट 28 यूरो (लगभग 2000 रुपये) का मिला। अगले दो तीन घंटे हम होहो बसों में और नावों में घूमते रहे और शहर का विवरण सुनते रहे। वर्ष 1200 में एम्सटरडैम एक मछली पकड़ने वालों का गाँव था। फिर एम्सटैल नदी पर डैम बनाया गया और डैम के आसपास शहर बसना शुरू हो गया और शहर का नाम एम्सटरडैम पड़ गया। वर्ष 1600 में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी बनी जिसने एम्सटरडैम में डेरा जमाया। इस कंपनी ने भारत और इन्डोनेशिया से व्यापार शुरू किया और इतना पैसा बनाया कि एम्सटरडैम एक समृद्ध शहर बनता गया। इस तरह ऐम्सटरडम के इतिहास में भारत का भी एक महत्वपूण स्थान है। बहुत से नागरिकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी में पैसा लगाया और बाद में कंपनी में हिस्सेदारी की खरीद फरोख्त के लिये विश्व की पहली स्टॉक एक्सचैंग मार्किट एम्सटरडैम में ही बनी। एम्सटरडैम एक महत्वपूर्ण बंदरगाह और व्यापार केंद्र के रूप में विकसित हुआ जहां जहाज़ों का आना जाना और विदेशियों का जमघट बढ़ता गया । इसके फलस्वरूप जैसा कि ऐसे बंदरगाहों पर अक्सर होता है, वैश्याओं (सैक्स वर्कर) का जमघट भी एम्सटरडैम में बढ़ता गया और वहाँ रैड लाइट डिस्ट्रिक की नीव पड़ी जो कि अब एम्सटरडैम में बहुत फल फूल रहा है।

शाम को हम डैम स्क्वायर में जो कि शहर का एक महत्वपूर्ण केंद्र है घूमते रहे। डैम स्क्वायर के बीच में एक नैशनल मौन्यूमैंट है जिसे चारो ओर बैठने की जगह है। डैम स्क्वायर में ही मैडम ट्यूसैड का वैक्स म्यूजियम है जिसकी टिकट 20 यूरो की थी। पर हमने देखा कि सिवाए महात्मा गांधी के किसी भी भारतीय व्यक्ति की वैक्स मूर्ति उस म्यूजियम में नहीं थी। फिर दिल्ली में भी मैडम ट्यूसैड का म्यूजियम बन रहा है सो पैसा वेस्ट करने की जरूरत नहीं समझी। डैम स्क्वेयर और हमारे होटल के बीच की सड़क पर बहुत से रेस्टोरेंट थे जिन्होंने बाहर पटरी पर कुर्सियां और मेजें लगा रक्खी थीं, जो कि पूरे योरोप में बहुत पॉपुलर है। हर रेस्ट्रां में भारी भीड़ थी। किसी भी वक्त एम्सटरडैम में शहरी नागरिकों से ज्यादा पर्यटक होते हैं और सभी को बाहर खाना होता है। रेस्ट्रां में भीड़ होना लाज़मी ही है।

यूरोप कला और कल्चर का प्रमुख केंद्र रहा है और यह सत्य लगभग सभी योरोपीय देशों में साफ–साफ विदित होता है। पैरिस, रोम और बारसीलोना के म्यूजियम इसकी गवाही देते हैं। एम्सटरडैम भी कला का बहुत महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। शहर में बहुत सारे कला म्यूजियम हैं जैसे कि वैन गौग और रैम्ब्रैंट जैसे महान कालाकारों के म्यूजियम। सबसे बड़ा म्यूजियम एम्सटरडैम का राइक्स म्यूजियम है जिसमे हमने तीन घंटे व्यतीत किये। म्यूजियम में वर्ष 1100 से आधुनिक काल तक की कलाकृतियाँ रक्खी गई हैं। प्राचीन रियलिज्म और बाद के इम्प्रैशनिज्म की हजारो कलाकृतियां वहां हैं जिन्हें हम जैैसे दर्शक बहुत समय लगा कर नहीं देख सकते। एक रुचिकार और जानकार कलाकार ऐसे संग्रहालों को देखने में कई दिन बिता सकता है।

शहर में लगभग 50 म्यूजियम हैं और हरेक को देखना संभव नहीं था। शहर के नागरिकों की कई विषेशताएँ हमने नोट कीं। पहला तो नीदरलैंड के नागरिकों का साइकिल प्रेम। नीदरलैंड में जितनी आबादी है उतनी हीं सइकिलें भी हैं। सड़कों पर साइकिलों के लिये अलग लेन की व्यवस्था होती है जहां बहुत सारे युवक, युवतियाँ, बच्चे और बूढ़े साइकिल चलाते दिखाई देते हैं। मैंने दिमागी गुणाभाग कर के पाया कि नीदरलैंड एक साल में 10 हजार करोड़ रुपये का पैट्रोल साइकिल चलाने से जरूर बचाता होगा। अगर हमारे देश में भी लोग साइकिल चलाना शुरू कर दें तो हम लाखों करोड़ का पैट्रोल बचा सकते हैं। सेहत बनेगी, वह अलग से।

एक अजीब बात हमने ऐम्सटरडम में देखी कि जहां भी टॉयलैट इस्तेमाल करना हो उसके पैसे लगते हैं। फीस 25 से 50 सैंट (20 से 40 रुपये) होती है। पता नहीं डच लोग ऐसा क्यों करते हैं। टॉयलेट के रख रखाव में पैसा अवश्य लगता है पर यूरोप के बाहर और देशों में ऐसी फीस मैंने नहीं देखी। ट्रेन स्टेशन पर हर रैस्ट्रां के बहर तख्ती लगी थी कि “टायलेट नहीं है” जिससे लोग इस कारण से अंदर ही न घुसें। यहाँ तक कि हम लोग मैकडोनल्ड रैस्ट्राँ में गए वहां भी टायलेट के लिये पैसे लगे। फिर यहां खाने के साथ टमेटो कैचप के पैसे भी देने पड़ते हैं। मैकडोन्लड में एक कैचप का पैकैट 60 सैंट (45 रुपये) का मिला जो किह हमारे देशमें हर जगह मुफ्त मिलते हैं।

नीदरलैंड सोच में एक बहुत की उदारवादी देश है। कई ऐसी सामाजिक समस्याएँ हैं जो कि हर समाज में होती हैं और उनका निवारण बहुत कठिन लगता है। उदाहरण के तौर पर वैश्यावृत्ति समाज में तब से है जब से समाज बना है। हर समाज में इसकी निंदा की जाती है पर कोई ठोस निवारण नहीं होता। नीदरलैंड का निवारण हमें अटपटा लग सकता है पर उनकी युक्ति यह है कि अगर इसे रोका नहीं जा सकता तो इसे कानूनन स्वीकृति दे दी जाए। इस प्रकार यह पेशा भूमिगत न होकर खुले में रहेगा एवं उसकी देखरेख सरकार आराम से कर सकेगी। यहाँ कोई भी सैक्स कर्मी अपने आप को एक कानूनन बिजनैस के रूप में घोषित कर सकता है। ऐसे पंजीकृत सेक्स कर्मी अपना बिजनैस बैंक खाता खोल सकते हैं और धंधा करने को स्वतंत्र होते हैं। वे इनकम टैक्स देते हैं और उनको सरकार से स्वस्थ और रिटायरमैंट सुविधाएँ मिलती हैं। पुलिस का समुचित संरक्षण भी उन्हें मिलता है।

इसी तरह ड्रग्स की समस्या हर समाज में है। नीदरलैंड में नशे की ड्रग्स को अपेक्षकृत काफी छूट है। कई कॉफी हाउसों में दस ग्राम तक ड्रग्स बेरोक–टोक खरीदी जा सकती हैं। पूरे नीदरलैंड में डच नागरिक इस तरह ड्रग्स ले सकते हैं। सिर्फ ऐम्सटरडम में यह सुविधा विदेशियों को भी उपलब्ध हैं।

एक और विचित्र सुविधा यहाँ उपलब्ध है। यह है इच्छा मृत्यु की स्वतंत्रता। नीदरलैंड उन गिने चुने देशों में से है जहाँ कोई व्यक्ति अगर जीवन त्यागना चाहे तो सरकार उसकी इस इच्छा का आदर करती है। अगर कोई नागरिक जीने की इच्छा खो चुका है तो उसे जीते रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता। डॉक्टरों की सहायता से वह आराम से जीवन त्याग सकता है। इन सब बातों से यह सिद्ध होता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नीदरलैंड का समाज सर्वोपरि रखता है। कोई नागरिक अपने लिये क्या निर्णय करता है वह हो सकता है दूसरों की नज़रों में ठीक न हो पर नीदरलैंड का समाज अपना दृष्टिकोण दूसरों पर थोपना नहीं चाहता। दूसरों की वैल्यू जजमैंट से नीदरलैंड के नागरिक बचते हैं।

नीदरलैंड एक छोटा देश है पर मनवीय सोच में नए प्रयोग करने को सदैव तत्पर रहता है। यहां के लोग कुछ रिजर्वड किस्म के लगते हैं और ज्यादातर अपने में मग्न लगते हैं। गंदगी का नामो निशान नहीं है। साइकिल चलाते हुए डच लोगों के झुण्ड, रैस्ट्रां में कॉफी पीते हुए बुजुर्ग और प्रकृति द्वारा प्रदान किये गये सुन्दर नज़ारों और ठंडे मौसम का आनंद लेते हुए नागरिकों को देख कर बहुत अच्छा लगता है। एक देश तभी तरक्की करता है जब उसके नागरिका देश के प्रति निष्ठाबद्ध हों और अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहें। डच लोग ऐसे ही हैं। भगवान से प्रार्थना है कि भारत के लोग भी इस निष्ठा को पहचानें और इस रास्ते पर चलें।

राजीव कृष्ण सक्सेना [जून 11. 2016]

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