Goa is a beautiful and cosmopolitan state with Panaji or Panjim as its capital. This is a tiny state with good infrastructure and relatively low cost of living. Pollution is low and lifestyle easy. We recently visited the capital city of Panjim in North Goa and this article is about our experience. – Rajiv Krishna Saxena
गोवा की यात्रा
इस बार सोचा कि दीवाली में दिल्ली छोड़ कर बाहर कहीं जाएँ। बच्चे विदेशों में बसे हैं और हम मीयाँ बीबी अकेले यहाँ दिल्ली में। यह तो आजकल घर–घर की कहानी है। कोई नई बात नहीं है। पर तीज त्यौहारों मे बच्चों और नाती पोतों के बिना रौनक नहीं होती। हमें अकेले घर में बैठ कर दीवाली के समय होने वाली भयंकर प्रदूषित हवा में साँस लेने का कोई खास औचित्य नहीं लगा। सो एक सप्ताह के लिये गोवा जाने का प्लान बनाया। दीवाली से पाँच दिन पहले ही हमने गोवा पहुँचने का मन बनाया। ऐसा नहीं था कि हम पहले कभी गोवा नहीं गऐ थे। पर पहले की गोवा यात्राएँ ऑफीशियल कारणों से हुई थीं और पर्यटन की दृष्टि से भ्रमण के लिये हम दोनों पहली बार गोवा जा रहे थे।
गोवा छोटा सा राज्य है जोकि सन 1961 तक पुर्तगाली उपनिवेश था। तब भरत की सेना ने गोवा में घुस कर उसे पुर्तगाली शासन से मुक्ति दिलाई थी। पुर्तगाली शासन यहाँ लगभग 400 वर्षों तक रहा था। इसीलिये पुर्तगाली कल्चर और भवन निर्माण कला के नमूनें यहाँ अब भी बहुतायत से मिलते हैं। गोवा में मात्र दो डिस्ट्रिक्ट हैं नार्थ गोवा और साउथ गोवा। शनीवार को दोपहर के तीन बजे हमारा विमान गोवा के हवाई अड्डे उतरा जो कि साउथ गोवा में है। हमारा होटल नौर्थ गोवा में था और करीब 30 किलोमीटर दूर था। टैक्सियाँ गोवा में महँगी हैं। 30 किलोमीटर के लिये एक हजार रुपये लगे। दिल्ली में उपलब्ध ओला और ऊबर जैसी टैक्सी सेवाएँ गोवा में उपलब्ध नहीं हैं। पता चला कि टैक्सी चालकों की यूनियन गोवा में बहुत शक्तिशाली है और ओला ऊबर सेवाओं को गोवा में प्रवेश ही नहीं करने देतीं। दिल्ली में इन सेवाओं के आने से पब्लिक को बहुत राहत मिली है। टैक्सी के किराए काफी कम हो गए हैं और जब चाहो तब टैक्सी घर पर हाजिर हो जाती है। गोवा जैसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र में रेडियो टैक्सियों का न होना पर्यटकों के लिये बहुत कठिनाइयों का कारण बनता है यह हमारा व्यक्तिगत अनुभव रहा। टैक्सी वाले मनमाना किराया मांगते हैं और आराम से टैक्सी या अॉटो मिलते ही नहीं।
एयरपोर्ट से होटल आते आते ही हम दिल्ली वालों को कुछ नए प्रकार के दृश्य देखने को मिले। सड़कें संकरी थीं पर ट्रैफिक भी कम था। दूर दूर तक हरियाली पसरी थी और दिल्ली में जो स्पेस न होने की और कभी न खत्म होने वाली भीड़ की जो अनुभूति निरंतर होती है वह यहाँ नदारद थी। सड़क के एक तरफ समुद्र था और दूसरी ओर घनघोर हरियाली। यह दृश्य बहुत लुभावना था और यह पार्शव संगीत हमारे पूरे गोवा प्रवास में निरंतर बना रहा। इसी के कारण पर्यटकों में शांति और आराम का एक अनूठा अहसास जागृत होता है।
हमारा रहने की जगह एक बैड एंड बैकफास्ट वाला कमरा था जहाँ कि घर के मालिक न केवल रहने की सभी सुविधाएँ प्रदान करते हैं पर सुबह का नाश्ता भी देते हैं। फिर सारे दिन आप मटरगश्ती करें और जहाँ चाहे वहाँ लंच और डिनर करें। यह सुविधा अक्सर होटलों से काफी सस्ती पड़ती है और आराम से उपलब्ध है (देखेंः www.airbnb.co.in) । इंटरनैट पर हमने देखना शुरू किया कि गोवा में क्या किया जाए। फिर पता चला कि एक बस सेवा है जिसे होहो सर्विस कहते हैं। होहो यानि कि “हौप इन हौप आउट” बस सर्विस जिसमें बस एक निर्धारित रूट पर चलती रहती हैं और आप पूरे दिन का टिकट खरीद कर कहीं भी चढ़ या उतर सकते हैं। इन बसें के रूट ऐसे होते हैं जिस पर बहुत से पर्यटन स्थान होते हैं। आप मन चाहे दर्शनीय स्थल पर उतर जाइये और जितना चाहें समय वहां व्यतीत कीजिये। वापस आने पर कोई दूसरी होहो बस आप ले सकते हैं दूसरे पर्यटन स्थल जाने के लिये। होहो बसें दुनियाँ के कई प्रमुख शहरों में पर्यटकों के लिये उपलब्ध हैं जैसे दिल्ली में भी। गोवा की होहो सर्विस का इस्तेमाल 300 रुपय प्रति टिकट दे कर हमने किया। पहला स्टॉप मीरामर बीच था। बीच यानी कि रेतीला समुद्रतट। गोवा अपने लुभावने बीचेज़ के लिये पूरी दुनियाँ में मशहूर है। दूर दूर से देसी व विदेशी सैलानी गोवा के रेतीले तटों पर समय व्यतीत करने आते हैं। नार्थ और सउथ गोवा में बहुत सारे बीच हैं। कुछ बीच बहुत भीड़ भाड़ वाले होते हैं व अन्य शान्त व कम रौनक वाले। मीरामर बीच पर मोटरबोट थीं जो कि पर्यटकों को समुद्र में घुमाने ले जा रही थीं। मुख्य आकर्षण था समुद्र में उछलती डॉलफिन मछलियों को देखने का। आधे घंटे की ट्रिप की फीस थी 300 रुपये प्रति व्यक्ति।हमने यह ट्रिप ली और सचमुच उछलती हुई कुछ डॉलफिन मछलियाँ हम देख पाए। इस पूरी ट्रिप के दौरान बोट पर डीजे लाउड म्यूजिक बजाता रहा और सैलानियों को डांस करने को उत्साहित करता रहा। कुल मिला कर यह एक अच्छा अनुभव रहा।फिर हम डौना पौला समुद्री जैट्टी गये जो कि एक समुद्र्र को निहारने की जगह थी और कुछ खास बात वहाँ नहीं थी सिवाए कि बहुत से कपड़े बेचने के स्टाल वहाँ थे।
हम होहो बस से ओल्ड गोवा भी गये जहाँ चार बहुत पुराने चर्च थे। सबसे पुराना चर्च बेबी जीसस का था जो कि 400 वर्ष पुराना है। ये चर्च अभी भी पूजापाठ के काम में आते हैं और वहाँ ईसाई सर्विस चल रही थी।पंजिम मार्किट भी हम गए जो कि सब्जी और फल फूलों का एक विशाल बाज़ार है और एक विशाल बिल्डिंग के अंदर लगता है। समुद्रतट पर एक 400 साल पुर्तगालियों का बनाया एक विशाल किला आग्वाडा फोर्ट पंजिम गोवा में है जहां हम दूसरे दिन गए। इस किले के ऊपर एक उतना ही पुराना लाइट हाउस है। इस किले का प्र्रयोग पीने का पानी स्टोर करने के लिये भी किया जाता था। अब केवल कुछ दुर्ग की दीवारें और लाइट हाउस ही हम देख सकते हैं। वास्तुशिल्प के दृष्टिकोण से यह किला कोई खास प्रभावशाली नहीं लगा।
वैसे तो गोवा में बहुत से समुद्र्री बीच हैं पर हम कुछ चुनिन्दा बीचों में ही गए। इनमें से सबसे बड़ा था बागा बीच। जब दोपहर हम बीच पर पूहुंचे तो वहाँ गर्मी के बावजूद अच्छी खासी भीड़ थी। बीच पर छतरी वाले बहुत सी लेटने वाली कुर्सियाँ लगी थीं जहाँ छाया में आराम से रिलैक्स किया जा सकता था।एक घंटे के लिय 100 रुपये दे कर हम एक छतरी के नीचे रिलैक्स करने लगे। भारतीय बीच का दृश्य विदेशों से बहुत भिन्न होता है। यहाँ बच्चे युवा. नर नारी और अधेड़ लोग मात्र पानी में एक आध फुट पानी की गहराई तक जाते हैं और वहीं घूमते रहते हैं। लगभग कोई भी समुद्रमें तैरता नज़र नहीं आता और न कोई सर्फिंग करता दिखता है। भारतीय लोग विदेशियों की तरह सन बेदिंग भी नहीं करते ना ही बीच के कपड़े पहनते हैं। कुल मिला कर बीच पर एक बेतरतीब भीड़ ही दिखाई दे रही थी। फेरी वाले लोग तरह तरह की चीज़ें बेच रहे थे। कुछ मालिश करने वाले भी ग्र्राहक ढ़ूंढ रहे थे। सुन था कि बीच पर गाना बजाना होता है पर वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। शायद रात को होता हो। अंजुना बीच पर एक प्र्रसिद्ध फ्ली मार्केट लगी थी जिसमें बहुत से विदेशी लोग घूम रहे थे। ज्यदातर स्टाल नकली आभूषण और कपड़ों के थे। हमारे लिये कुछ भी खास दिलचस्प वहां नहीं था।
तीसरे दिन हमने मांडोवी नदी पर एक घंटे की क्रूज ट्रिप ली। एक बड़ी बोट में लगभग 200 यात्रियों के साथ यह ट्रिप थी। ऊपरी डैक पर पलास्टिक की कुर्सियाँ लगी थीं। एक छोटी सी स्टेज भी थी जिस पर एक डीजे कार्यरत था। पूरी क्रूज में आयोजकों का ध्यान नदी के दृश्य पर बिल्कुल भी नहीं था। सिर्फ बहुत ऊंचे सुर में हिंदी बौलीवुड के डांस नंबर बजते रहे और डीजे लोगों को डांस करने को उकसाता रहा। आयोजकों ने कुछ लोकल डांस भी प्र्रस्तुत किये पर वह कुछ खास नहीं थे। कुल मिला कर यह बोटिंग ट्रिप कुछ विशेष दिलचस्प नहीं थी। इस तरह दो तीन दिनों में हमने लगभग सभी दर्शनीय स्थल देख लिये। फिर समझ नहीं आया कि अब क्या करें।अभी तो चार दिन और बाकी थे। कूछ और दर्शनीय या कि करने योग्य चीजें इंटरनैट पर दिखीं पर रिव्यूज़ बिल्कुल बेकार थे सो हमने वह सब नहीं किया। फिर हमने एक मॉल ढूंढ निकाली (मॉल–दो–गोवा) जोकि एयर कंडीशंड थी और जिसमे एक मूवी मल्टीप्लैक्स भी था। अन्य करणीय चीजों के अभाव में हम अगले कुछ दिन मॉल के ही चक्कर लगाते रहे और विभिन्न फिल्में देखते रहे। मॉल में एक बढ़िया फूड कोर्ट भी थी जिसका हमने खूब फायदा उठाया। हम अक्टूबर के मध्य में गोवा गए थे पर गर्मी अभी भी बहुत थी। ऊपर से ह्यूमिडिटी बहुत ज्यादा थी। बाहर निकलने पर पसीना आता और ऑटो या टैक्सी न मिलने की लाचारी अलग। ऐसे में पंजिम की बस सेवा एक विकल्प के रूप में सामने आई और इसका हमने बहुत उपयोग किया। बसें समय पर चलतीं जहां हाथ दो वहीं रुकतीं और किराया बहुत कम। गोवा पंजिम की बस सेवा हमे बहुत अच्छी लगी।
दिवाली की रात हम बाहर निकले यह देखने कि यहाँ लोग दिवाली कैसे मनाते हैं। हमने कई घरों में दीये और मोमबत्तियों की कतारें देखीं और बिजली की लड़ियाँ भी। कई जगह घरों से लक्षमी पूजन की घंटियां सुनई पड़ीं। छोटी बड़ी रंग बिरंगी कंडीलें जगह जगह लटकी दिखाई दीं।कंडीलें अब दिल्ली में ज्यादा नहीं दिखाई पड़तीं पर दिवाली में गोवा में इनका बहुत परचलन है। पटाखों की भी धूम थी पर उतनी मात्रा में नहीं जितना कि दिल्ली में। दिवाली से पहली रात को यहां नरकासुर वध दिवस मनाया जाता है। नरकासुर के बड़े बड़े पटाखों भरे पुतले जलाए जाते हैं जैसे कि दिल्ली में रावण के पुतले दशहरे पर।यह हमारे लिये एक नई बात थी।
गोवा में कुछ खास करने को नहीं है पर प्रदूषण बहुत कम है। हरियाली और नदी समुद्र और झीलों से एक बहुत सुंदर दृश्य मिलता है। समुद्र बीच गोवा की विशेषता हैं पर जिनको इसमें कोई खास रुचि नहीं होती वे रोज रोज वहां नहीं जा सकते। तो फिर गोवा में क्या करें? गोवा आप मात्र रिलैक्स करने जाएं और कुछ करने कराने के मतलब से नहीं। प्यारी जगह है और हिंदी हर जगह बोली जाती है। खाना भी अच्छा मिलता है और सस्ता भी। गोवा कितने दिनों के लिये जाएं यह आपकी रुचि पर निर्भर करता है। औसतन तीन या चार दिनों का गोवा प्रवास आम पर्यटकों के लिये काफी है। अगर आप बीच–प्रेमी हैं तो कुछ ज्यादा दिनों की वेकेशन भी प्लान कर सकते हैं।
एक और प्र्रकार के पर्यटक भी गोवा आते हैं जो रिटायर्मैंट के बाद रहने के विकल्प के रूप में गोवा को परखना चाहते हैं। जैसे कि अमरीका में फ्लोरीडा सेवा निवृत्त लोगों के लिये एक पासंदीदा जगह बन गई है वैसे ही गोवा रिटायर्ड भारतीय नागरिकों के लिये एक मन भावन जगह बनती जा रही है। उदाहरणतः दिल्ली में जनसंख्या बहुत बढ़ गई है जिसके परिणाम स्वरूप अब इतना प्रदूषण है व ट्रैफिक इतना ज्यादा है कि हम अक्सर सुनते हैं कि दिल्ली अब रहने लायक जगह नहीं रह गई है। कार्यकाल समाप्त होने तक तो दिल्ली में रहना मजबूरी है पर सेवा निवृत्ति के बाद तो यह शहर छोड़ा जा सकता है। इस परिप्र्रेक्ष में गोवा एक विकल्प के रूप में भी उभरा है। गोवा सुंदर व कोस्मोपोलिटन शहर है प्र्रदूषण बहुत कम है और रहने का खर्च भी कम है। हिंदी भाषा हर जगह बोली जाती है और बहुत सारे बिल्डर यहाँ विभिन्न प्र्रकार के एपार्टमैंट व अन्य तरह के घर बना रहे हैं। मैंने पाया कि एपार्टमैंट की कीमतें कमोबेश वैसी ही हैं जैसे कि दिल्ली एन सी आर में हैं। आपको 25 से 75 लाख रुपये तक में अच्छे एपार्टमैंट मिल सकते हैं। पर रिटायर्मैंट के बाद नये शहर में बसना इतनी आसान बात नहीं लगती। अगर आप रिटायर होने वाले हैं व शहर बदलना चाहते हैं तो आप गोवा अवश्य आइए व स्वयं इस विकल्प को परखिये।
राजीव कृष्ण सक्सेना
अक्टूबर 20. 2017
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