geeta-kavita

कितनी बड़ी विवशता – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

कितनी बड़ी विवशता - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Beautiful poem about two lovers lost in thoughts on a river bank, with so many restrictions that the social norms put on them. Trying, but unable to say anything. Rajiv Krishna Saxena कितनी बड़ी विवशता कितना चौड़ा पाट नदी का, कितनी भारी शाम, कितने खोए–खोए से हम, कितना तट निष्काम …

Read More »

तत्व चिंतनः भाग 5 – नई दुनियां, पुरानी दुनियां – राजीव कृष्ण सक्सेना

तत्व चिंतनः भाग 5 - नई दुनियां, पुरानी दुनियां

तत्व चिंतनः भाग 5 – नई दुनियां, पुरानी दुनियां बिल मेरे एक अमरीकी मित्र हैं। उन्होंनें कोई बंगाली फिल्म किसी अमरीकी टैलीविजन चैनल पर देखी।फिल्म उन्हें अच्छी लगी पर एक बात उन्हें समझ नहीं आई और वे यह समस्या ले कर मेरे पास आए। फिल्म के नायक और नाइका एक …

Read More »

कौन चीज़ मशहूर – काका हाथरसी

प्रसिद्धि प्रसंग - काका हाथरसी

Here is an old poem listing the famous things of many places in India in the typical style of Kaka Hathrasi. Poem is of the time when Bangladesh was created out of Pakistan by native fighters fighting against Pakistani army, hence the last line of this poem. Rajiv Krishna Saxena …

Read More »

देवानंद और प्रेमनाथ – शैल चतुर्वेदी

देवानंद और प्रेमनाथ - शैल चतुर्वेदी

Shail Chaturvadi the well known hasya kavi often makes fun of his own bald head and fat body with protruding belly. Here he tells us that in his youth he actually had full hair head like Devanand, though in old age he is more like Premnath. Rajiv Krishna Saxena देवानंद …

Read More »

जीवन का ध्येय – राजीव कृष्ण सक्सेना

This article discusses the aim of living a life; its Eastern and Western perspectives. Rajiv Krishna Saxena जीवन का ध्येय जीवन जीने को एक यात्रा कहा गया है। जीवन जीना यानि कि जीवन पथ पर चलना। पर यात्रा का तो एक लक्ष्य होना चाहिये। हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? …

Read More »

सूर्य–सा मत छोड़ जाना – निर्मला जोशी

सूर्य–सा मत छोड़ जाना - निर्मला जोशी

A relationship is based upon total trust. Breaking that trust destroys the relationship. Here is a pleading to the love for not breaking the trust. – Rajiv Krishna Saxena सूर्य–सा मत छोड़ जाना मैं तुम्हारी बाट जोहूँ तुम दिशा मत मोड़ जाना तुम अगर ना साथ दोगे पूर्ण कैसे छंद …

Read More »

तब रोक न पाया मैं आँसू – हरिवंश राय बच्चन

तब रोक न पाया मैं आँसू - हरिवंश राय बच्चन

When life-long delusions end and we suddenly discover the truth, a heart-break invariably follows. So beautifully expressed in this poem of Harivansh Rai Bachchan! Rajiv Krishna Saxena तब रोक न पाया मैं आँसू जिसके पीछे पागल हो कर मैं दौड़ा अपने जीवन भर, जब मृगजल में परिवर्तित हो, मुझ पर …

Read More »

झुक नहीं सकते – अटलबिहारी वाजपेयी

झुक नहीं सकते - अटलबिहारी वाजपेयी

Here is another poem of Shri Atal Bihari Vajpayee Ji. It appears to have been written during the period of emergency imposed by Mrs. Indira Gandhi. It conveys a resolve to keep on the struggle. Rajiv Krishna Saxena झुक नहीं सकते टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते सत्य …

Read More »

मेरो तो गिरधर गोपाल, हे री मैं तो प्रेम दिवानी- मीरा बाई

मीरा की कृष्ण भक्ति

On the occasion of Janmasthami, the birthday of Lord Krishna, we present two popular bhajans of Meerabai. Meerabai (born 1512 AD) was reluctantly married to Bhojraj, the second son of Rana Sanga. She was however so utterly engrossed in the love of Lord Krishna, that she refused to recognize Bhojraj …

Read More »

अमंगल आचरण – काका हाथरसी

अमंगल आचरण - काका हाथरसी

This Kaliyug needs a new code of conduct and Kaka Hathrasi proposes one that may be adopted! Rajiv Krishna Saxena मात शारदे नतमस्तक हो, काका कवि करता यह प्रेयर अमंगल आचरण ऐसी भीषण चले चकल्लस, भागें श्रोता टूटें चेयर वाक् युद्ध के साथ–साथ हो, गुत्थमगुत्था हातापाई फूट जायें दो चार …

Read More »