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सूना घर – दुष्यंत कुमार

An empty house… pleasant memories of the now-gone home-maker. Memories of laughter and the jingling of bangles… how does one come to terms with this kind of emptiness? Rajiv Krishna Saxena सूना घर सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को। पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर अब …

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साँप – धनंजय सिंह

Here snakes are used as a metaphor for unscrupulous political leader. Lovely poem by Dr. Dhananjay Singh. Rajiv Krishna Saxena साँप अब तो सड़कों पर उठाकर फन चला करते हैं साँप सारी गलियां साफ हैं कितना भला करते हैं साँप। मार कर फुफकार कहते हैं ‘समर्थन दो हमें’ तय दिलों …

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रोज़ ज़हर पीना है – श्रीकृष्ण तिवारी

रोज़ ज़हर पीना है – श्रीकृष्ण तिवारी

Living a life entails a great deal of sufferings. The attempt should however be to retain sanity and a firm eye on the real truth at the end. Rajiv Krishna Saxena रोज़ ज़हर पीना है रोज़ ज़हर पीना है, सर्प–दंश सहना है, मुझको तो जीवन भर चंदन ही रहना है। …

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रहने को घर नहीं है – हुल्लड़ मुरादाबादी

रहने को घर नहीं है – हुल्लड़ मुरादाबादी

Here is another poem of Hullad Muradabadi, on finding a home to live in the era of sky rocketing prices. Rajiv Krishna Saxena रहने को घर नहीं है कमरा तो एक ही है कैसे चले गुजारा बीबी गई थी मैके लौटी नहीं दुबारा कहते हैं लोग मुझको शादी-शुदा कुँआरा रहने …

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रम्भा – रामधारी सिंह दिनकर

रम्भा – रामधारी सिंह दिनकर

This excerpt is from the famous epic “Urvashi” by Ramdhari Dinkar. Urvashi, the apsara is madly in love with the earth king “Pururava” to the extent that she wants to relocate from swarga to earth permanently and become an earth woman. Her friends Rambha, Sehjaney and Menaka are perplexed that …

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परखना मत – बशीर बद्र

परखना मत - बशीर बद्र

Shri Bashir Badr is a well know poet of Hindustani. Here are few of his well-known shair. Rajiv Krishna Saxena परखना मत परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता। बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समंदर …

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पगडंडी – प्रयाग शुक्ल

पगडंडी - प्रयाग शुक्ल

A nerrow track in the forest. Where does it go? Rajiv Krishna Saxena पगडंडी जाती पगडंडी यह वन को खींच लिये जाती है मन को शुभ्र–धवल कुछ–कुछ मटमैली अपने में सिमटी, पर, फैली। चली गई है खोई–खोई पत्तों की मह–मह से धोई फूलों के रंगों में छिप कर, कहीं दूर …

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नानक दुखिया सब संसार – जेमिनी हरियाणवी

नानक दुखिया सब संसार – जेमिनी हरियाणवी

Gautam Buddha said that this world is a world of sorrows. Here Guru Nanak is saying the same. Except for few illusory moments of mirth, rest of the life is a struggle and frustration. Rajiv Krishna Saxena नानक दुखिया सब संसार नानक दुखिया सब संसार बूढ़ा बाप पड़ा बीमार माँ …

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न मिलता गम – शकील बदायुनी

न मिलता गम – शकील बदायुनी

I have often felt that the deep frustration and pining about lost love depicted in Urdu poetry, is rarely seen in Hindi poetry. The Muslim tradition of purdah made the mixing of boys and girls very difficult and that frustration perhaps gets reflected in Urdu poetry. In Hindu tradition, such …

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मेहंदी लगाया करो – विष्णु सक्सेना

मेहंदी लगाया करो - विष्णु सक्सेना

Here is the utterings of a lovelorn man praising to sky the beauty of his love. Rajiv Krishna Saxena मेहंदी लगाया करो दूिधया हाथ में, चाँदनी रात में, बैठ कर यूँ न मेंहदी रचाया करो। और सुखाने के करके बहाने से तुम इस तरह चाँद को मत जलाया करो। जब …

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