Contemplation Poems

मन रे तू काहे न धीर धरे – साहिर लुधियानवी

मन रे तू काहे न धीर धरे – साहिर लुधियानवी

Some times, we may be very familiar with a song, yet we may not have ever noticed the meaning of the lyrics. The other day this song was sung by a contest on a popular reality show. I must have heard it many times before but never cared to listen …

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कितने दिन चले – किशन सरोज

कितने दिन चले – किशन सरोज

Older norms and traditions are lost gradually as the hurricane of modernity rages in. Metaphors in this lovely poem paint an apt picture. Rajiv Krishna Saxena कितने दिन चले कसमसाई देह फिर चढ़ती नदी की देखिये, तट­बंध कितने दिन चले मोह में अपनी मंगेतर के समुंदर बन गया बादल, सीढ़ियाँ …

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खेल – निदा फ़ाज़ली

खेल – निदा फ़ाज़ली

Irrespective of our races and religions, we all arise from mother earth and dissolve into her. Who arises from the dissolved ingredients of who, no one can say. Here is a wonderful poem saying just that. External attributes that we wear in our life are artificial where in fact we …

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हम जीवन के महा काव्य – देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’

हम जीवन के महा काव्य – देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’

There are “friends” in our lives who keep trying to sabotage our plans in the background. Here is a poem for such “well-wishers”. Rajiv Krishna Saxena हम जीवन के महा काव्य हम जीवन के महा काव्य हैं केवल छंद प्रसंग नहीं हैं कंकड़ पत्थर की धरती है अपने तो पाँवों …

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लो दिन बीता – हरिवंश राय बच्चन

We always think that the next day or night would bring something new and break the hum-drum of life. But nothing new happens… Rajiv Krishna Saxena लो दिन बीता सूरज ढलकर पश्चिम पहुँचा डूबा, संध्या आई, छाई सौ संध्या सी वह संध्या थी क्यों उठते–उठते सोचा था दिन में होगी …

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वो आदमी नहीं है – दुष्यंत कुमार

वो आदमी नहीं है - दुष्यंत कुमार

Dushyant Kumar’s poetry is restless and points to gross injustice and absurdities in society. Here is another example. Rajiv Krishna Saxena वो आदमी नहीं है वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू, मैं क्या …

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पुनः स्मरण – दुष्यंत कुमार

पुनः स्मरण - दुष्यंत कुमार

Here is another great poem from Dushyant Kumar. Pathos in the poem is palpable. Rajiv Krishna Saxena पुनः स्मरण आह सी धूल उड़ रही है आज चाह–सा काफ़िला खड़ा है कहीं और सामान सारा बेतरतीब दर्द–सा बिन–बँधे पड़ा है कहीं कष्ट सा कुछ अटक गया होगा मन–सा राहें भटक गया …

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क्षुद्र की महिमा – श्यामनंदन किशोर

क्षुद्र की महिमा - श्यामनंदन किशोर

Elements in absolutely pure form do not have the utility that comes after a bit of impurity is mixed with them. Thus pure gold cannot be used for making a necklace, but some base metal has to be mixed in it in order to make it usable for jewelry. Similarly, …

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राही के शेर – बालस्वरूप राही

राही के शेर - बालस्वरूप राही

Baal Swaroop Rahi is a very well-known poet of Hindi and Urdu. Here are some selected verses. Rajiv Krishna Saxena राही के शेर किस महूरत में दिन निकलता है, शाम तक सिर्फ हाथ मलता है। दोस्तों ने जिसे डुबोया हो, वो जरा देर में संभलता है। हमने बौनों की जेब …

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बाकी रहा – राजगोपाल सिंह

बाकी रहा - राजगोपाल सिंह

A Hindustani Gazal is presented, written by Shri Rajgopal Singh. It presents some bitter-sweet realities of life. Rajiv Krishna Saxena बाकी रहा कुछ न कुछ तो उसके – मेरे दरमियाँ बाकी रहा चोट तो भर ही गई लेकिन निशाँ बाकी रहा गाँव भर की धूप तो हँस कर उठा लेता …

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