A village beauty pining for her love. Simple and uncomplicated thinking, old memories and a sense of loss. A lovely poem by Dharamvir Bharti Ji. Rajiv Krishna Saxena फागुन की शाम घाट के रस्ते, उस बँसवट से इक पीली–सी चिड़िया, उसका कुछ अच्छा–सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर …
Read More »दो दिन ठहर जाओ – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’
Here is another pleading for the love to stay for some more time. Rajiv Krishna Saxena दो दिन ठहर जाओ अभी ही तो लदी ही आम की डाली, अभी ही तो बही है गंध मतवाली; अभी ही तो उठी है तान पंचम की, लगी अलि के अधर से फूल की …
Read More »चल उठ नेता – अशोक अंजुम
In today’s political environment we see huge corruption all around. Retaining power by all means is the norm. Here is a poetic articulation of the situation by Ashok Anjum. Rajiv Krishna Saxena चल उठ नेता चल उठ नेता तू छेड़ तान! क्या राष्ट्रधर्म? क्या संविधान? तू नये नये हथकंडे ला! …
Read More »वो आदमी नहीं है – दुष्यंत कुमार
Dushyant Kumar’s poetry is restless and points to gross injustice and absurdities in society. Here is another example. Rajiv Krishna Saxena वो आदमी नहीं है वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू, मैं क्या …
Read More »तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का- जेमिनी हरियाणवी
Madhumas (youthful passion) lasts for a short time. Couples get aged and the whole scenario changes. Here is a funny interpretation by Jamini Hariyanvi. Rajiv KrishnaSaxena तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे …
Read More »पुनः स्मरण – दुष्यंत कुमार
Here is another great poem from Dushyant Kumar. Pathos in the poem is palpable. Rajiv Krishna Saxena पुनः स्मरण आह सी धूल उड़ रही है आज चाह–सा काफ़िला खड़ा है कहीं और सामान सारा बेतरतीब दर्द–सा बिन–बँधे पड़ा है कहीं कष्ट सा कुछ अटक गया होगा मन–सा राहें भटक गया …
Read More »राही के शेर – बालस्वरूप राही
Baal Swaroop Rahi is a very well-known poet of Hindi and Urdu. Here are some selected verses. Rajiv Krishna Saxena राही के शेर किस महूरत में दिन निकलता है, शाम तक सिर्फ हाथ मलता है। दोस्तों ने जिसे डुबोया हो, वो जरा देर में संभलता है। हमने बौनों की जेब …
Read More »बाकी रहा – राजगोपाल सिंह
A Hindustani Gazal is presented, written by Shri Rajgopal Singh. It presents some bitter-sweet realities of life. Rajiv Krishna Saxena बाकी रहा कुछ न कुछ तो उसके – मेरे दरमियाँ बाकी रहा चोट तो भर ही गई लेकिन निशाँ बाकी रहा गाँव भर की धूप तो हँस कर उठा लेता …
Read More »क्या तुम न आओगे – टी एन राज
Here is a unique narrative of missing love in old age! Rajiv Krishna Saxena क्या तुम न आओगे लो मेरी उम्र भी सठिया गई, क्या तुम न आओगे मेरे बालों में चांदी आ गई, क्या तुम न आओगे नज़र में मोतिया उतरा, हुआ हूं कान से बहरा तुम्हारी ही जवानी …
Read More »अम्बर की एक पाक सुराही – अमृता प्रीतम
Here is a nice poem of Amrita Pritam based upon which a lovely song was composed for film Kadambari (1975) that was sung by Asha Bhonsle. The song differs significantly from the actual poem below. This had to be done to bring the lines into meter. The last stanza we …
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