Poems

गाँव जाना चाहता हूँ – राम अवतार त्यागी

गाँव जाना चाहता हूँ – राम अवतार त्यागी

Human society evolved in villages. City based civilizations came later. Village life is generally simple and peaceful. City living may be complex and stressful. Those who migrated to cities from villages, at times wish to return back to simple life of villages. Rajiv Krishna Saxena गाँव जाना चाहता हूँ ओ …

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मधु की रात – चिरंजीत

मधु की रात - चिरंजीत

Living a life is tough but there are some nights of pure love and bliss. Here is how Chiranjit describes such a night. Rajiv Krishna Saxena मधु की रात अलक सन्धया ने सँवारी है अभी म्यान में चन्दा कटारी है अभी चम्पई रंग पे न आ पाया निखार रात यह …

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माँ और पिता – ओम व्यास ओम

माँ और पिता - ओम व्यास ओम

Maa aur Pita is a famous poem by Om Vyas Om giving a lovely and sentimental poetic description of mother and father. Try reading this poem loudly yet at a slow tempo and see its magic. Rajiv Krishna Saxena माँ और पिता माँ माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है …

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तुम्हारा साथ: रामदरश मिश्र

तुम्हारा साथ सुख के दुख के पथ पर जीवन छोड़ता हुआ पदचाप गया, तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते इतना लम्बा पथ नाप गया। तुम उतरीं चुपके से मेरे यौवन वन में बन कर बहार, गुनगुना उठे भौंरे, गुंजित हो कोयल का आलाप गया। स्वप्निल स्वप्निल सा लगा गगन रंगों में भीगी–सी …

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हम सब सुमन एक उपवन के – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हम सब सुमन एक उपवन के – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Here is a lovely poem most of us may have read in school days. Unity in diversity is emphasized here. Rajiv Krishna Saxena हम सब सुमन एक उपवन के हम सब सुमन एक उपवन के एक हमारी धरती सबकी, जिसकी मिट्टी में जन्मे हम। मिली एक ही धूप हमें है, सींचे गए …

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मंजिल दूर नहीं है: रामधारी सिंह दिनकर

मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर

मंजिल दूर नहीं है वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है चिनगारी बन गयी लहू की बूंद गिरी जो पग से, चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण चिन्ह जगमग से। शुरू हुई आराध्य भूमि यह, क्लांत नहीं रे …

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फूल, मोमबत्तियां, सपने: धर्मवीर भारती

फूल, मोमबत्तियां, सपने – धर्मवीर भारती

फूल, मोमबत्तियां, सपने यह फूल, मोमबत्तियां और टूटे सपने ये पागल क्षण यह काम–काज दफ्तर फाइल, उचटा सा जी भत्ता वेतन, ये सब सच है! इनमें से रत्ती भर न किसी से कोई कम, अंधी गलियों में पथभृष्टों के गलत कदम या चंदा की छाय में भर भर आने वाली …

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काका हाथरसी के दोहे

Here are some hilarious dohe of Kaka Hathrasi. The first one was recited few years ago by Prime Minister Modi during a speech in Parliament to tease Congress in opposition. Rajiv Krishna Saxena काका हथरसी के दोहे अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट मिल जाएगी आपको बिल्कुल सत्य रिपोर्ट …

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कानाफूसी – राम विलास शर्मा

कानाफूसी - राम विलास शर्मा

Ram Vilas Ji has so beautifully scandalized the Nature in the following mukta chhand kavita! References are to moon and stars in night, Semal (Palas) trees and mustard crops blooming in spring time, hot winds blowing in peak summers, and the early morning sunrise, in the four stanzas of the …

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मैं ही हूं – राजीव कृष्ण सक्सेना

Man in dialog with God

We humans see the world and interpret it as per our mental capacities. We try to make a sense out of this world by giving many hypotheses. But reality remains beyond us, a matter of constant speculation. Rajiv Krishna Saxena मैं ही हूं मैं ही हूँ प्रभु पुत्र आपका, चिर …

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