Poems

गीली शाम – चन्द्रदेव सिंह

गीली शाम – चन्द्रदेव सिंह

Those who walked together got separated one day. Only memories remained and tears. Here is a beautiful poem of Chandradev Singh – Rajiv Krishna Saxena गीली शाम तुम तो गये केवल शब्दों के नाम पलकों की अरगनी पर टांग गये शाम। एक गीली शाम। हिलते हवाओं में तिथियों के लेखापत्र …

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दिवा स्वप्न – राम विलास शर्मा

दिवा स्वप्न – राम विलास शर्मा

Here is a window to your own childhood, opened by Ram Vilas Sharma Ji. As if you turn back and look back in time. Last stanza beautifully put it in words. Rajiv Krishna Saxena दिवा स्वप्न वर्षा से धुल कर निखर उठा नीला नीला फिर हरे हरे खेतों पर छाया …

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धुंधली नदी में – धर्मवीर भारती

धुंधली नदी में – धर्मवीर भारती

Some times we look at the world just as an observer. We see all the colors, beauty and joy, but just as an outside observer and not as a participant. There is an acute sense of loneliness, as if nothing belongs to us. Here is how Dharamvir Bharati Ji conveys …

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दरवाजे बंद मिले – नरेंद्र चंचल

दरवाजे बंद मिले – नरेंद्र चंचल

Nothing works at times and the feeling of frustration is overbearing. Here is a nice poem by Narendra Chanchal- Rajiv Krishna Saxena दरवाज़े बंद मिले बार–बार चिल्लाया सूरज का नाम जाली में बांध गई केसरिया शाम दर्द फूटना चाहा अनचाहे छंद मिले दरवाज़े बंद मिले। गंगाजल पीने से हो गया …

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चल मियाँ – जेमिनी हरियाणवी

चल मियाँ – जेमिनी हरियाणवी

Here is another funny poem by Jamini Hariyanavi Ji. Rajiv Krishna Saxena चल मियाँ आज कल पड़ती नहीं है कल मियाँ छोड़ कर दुनियां कहीं अब चल मियाँ रात बिजली ने परेशां कर दिया सुबह धोखा दे गया है नल मियाँ लग रही है आग देखे जाइये पास तेरे जल …

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क्या करूँ अब क्या करूँ – राजीव कृष्ण सक्सेना

क्या करूँ अब क्या करूँ - राजीव कृष्ण सक्सेना

A poem showing what goes on in the mind of a one and a half year old little boy. Rajiv Krishna Saxena क्या करूँ अब क्या करूँ माम को मैं तंग करूँ या डैड से ही जंग करूँ मैं दिन रहे सोता रहूँ फिर रात भर रोता रहूँ पेंट बुक …

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सिंधु में ज्वार – अटल बिहारी वाजपेयी

सिंधु में ज्वार - अटल बिहारी वाजपेयी

On the auspicious occasion of the birthday of our past Prime Minister Atal Ji, I am posting excerpt from an inspiring poem written by him. सिंधु में ज्वार आज सिंधु में ज्वार उठा है नगपति फिर ललकार उठा है कुरुक्षेत्र के कण–कण से फिर पांचजन्य हुँकार उठा है। शत–शत आघातों …

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एक चाय की चुस्की – उमाकांत मालवीय

एक चाय की चुस्की - उमाकांत मालवीय

People keep a mask on (sipping tea and laughing) but inside there is so much suffering that remains hidden from others. Rajiv Krishna Saxena एक चाय की चुस्की एक चाय की चुस्की, एक कहकहा अपना तो इतना सामान ही रहा चुभन और दंशन पैने यथार्थ के पग–पग पर घेरे रहे …

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यात्रा और यात्री – हरिवंश राय बच्चन

यात्रा और यात्री – हरिवंश राय बच्चन

Journey of life is frustrating. One may even wonder, why travel at all. Yet, as Bachchan Ji says in this poem, one has to keep on moving till the last breath. Rajiv Krishna Saxena यात्रा और यात्री साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का …

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सोच सुखी मेरी छाती है – हरिवंश राय बच्चन

सोच सुखी मेरी छाती है – हरिवंश राय बच्चन

He loved her and she loved him but they were not destined to be together. Even as he lost her, he is contented for the reasons Harivansh Rai Bachchan Ji tells in his poem – Rajiv Krishna Saxena सोच सुखी मेरी छाती है दूर कहां मुझसे जाएगी केसे मुझको बिसराएगी …

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