We pine for a lovely day free of all problems and full of peace and contentment. Look at this lovely poem from Satyanarayan – Rajiv Krishna Saxena
कहां ढूंढें नदी सा बहता हुआ दिन
वह गगन भर धूप‚ सेनुर और सोना
धार का दरपन‚ भंवर का फूल होना
हां किनारों से कथा कहता हुआ दिन।
सूर्य का हर रोज नंगे पांव चलना
घाटियों में हवा का कपड़े बदलना
ओस‚ कोहरा‚ घाम सब सहता हुआ दिन।
कौन देगा मोरपंखों से लिखे छन
रेतियों पर सीप शंखों से लिखे छन
आज कच्ची भीत सा ढहता हुआ दिन।
~ सत्यनारायण
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