This poem of Shiv Magal Singh Suman was made popular by our past Prime Minister Atal Bihari Vajpayee Ji. This is the voice of a an upright man who refuses to compromise on his principles. Rajiv Krishna Saxena
क्या हार में क्या जीत में
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए,
अपने खंडहरों के लिए,
यह जान लो मैं विश्वख की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं,
संधर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
लघुता न अब मेरी छुओ,
तुम हो महान बने रहो,
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
चाहे हृदय को ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्तव्यो पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।
शिव मंगल सिंह सुमन
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