Chahata hoon desh ki dharti tujhe kuchh aur bhi doon!
मन समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ – राम अवतार त्यागी

I had read this poem by Ram Avtar Tyagi in children’s school Hindi text book. It left a deep impression. It may moisten eyes of some readers, especially those who feel special affinity for India. And that is why this is such a special poem. Illustration is from the collection of Prof. Jyotindra Jain – Rajiv K. Saxena

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण

गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

मॉंज दो तलवार को, लाओ न देरी
बॉंध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया धनेरी

स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो
गॉंव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो

सुमन अर्पित, चमन अर्पित
नीड़ का तृण-तृण समर्पित
चहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

∼ राम अवतार त्यागी

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