Lets us march on!
न हाथ एक शस्त्र हो, न हाथ एक अस्त्र हो, न अन्न वीर वस्त्र हो, हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो

बढ़े चलो, बढ़े चलो – सोहनलाल द्विवेदी

Here is another old classic from Sohan Lal Dwivedi. Most of us may have read it in school. Enjoy the rhythm – Rajiv Krishna Saxena

बढ़े चलो, बढ़े चलो

न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न नीर  वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

घटा घिरी अटूट हो,
अधर में कालकूट हो,
वही सुधा का घूंट हो,
जिये चलो, मरे चलो,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मिसाल हो,
बढो़ नया कमाल हो,
झुको नही, रूको नही,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

अशेष रक्त तोल दो,
स्वतंत्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नही, मरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो

∼ सोहनलाल द्विवेदी

लिंक्स:

 

Check Also

Living in the village of Lord Krishna!

मनुष हौं तो वही रसखान -रसखान

Raskhan the great Krishna-Bhakt lived in late sixteenth century some where around Delhi and wrote …

5 comments

  1. Great poem written by Great poet Sohan Lal Dewedi

  2. Question answers

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *