Little moon feels so cold in night. He asks his mother for a woolen coat. See the problem that the mother faces! I have tried my hands on illustrating this poem and hope that you like it. – Rajiv Krishna Saxena
चांद का कुर्ता
हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला
सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन सन चलती हवा रात भर जाड़े में मरता हूं
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाड़े का
बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने
कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने
जाड़े की तो बात ठीक है पर मैं तो डरती हूं
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूं
कभी एक अंगुल भर चौड़ा कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा
घटता बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आंखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ही यह बता नाप तेरा किस रोज लिवायें?
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये?
∼ रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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- प्रोफेसर राजीव सक्सेना
thank a lot
Very nice good luck dear
मैंने अपने बच्चे को चांद की जगह रखकर चांद के दर्द को महसूस किया है।यह कविता बहुत मार्मिक है। इसे पढ़कर व मनन कर आंखों से बरबस ही आंसू छूट पड़ते हैं। मेरी सबसे पसंदीदा कविताओं में से एक। दिनकर जी को शत शत नमन। गूगल का आभार जिसके माध्यम से हम इतनी बहुमूल्य वस्तुओं को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं।
Kya bolu
This very nice poem and I get more pleasure when I hear this poem
Very good poem