मचा तहलका - उमा कांत मालवीय

मचा तहलका – उमा कांत मालवीय

A nice little poem for children by Uma Kant Malaviya. Rajiv Krishna Saxena

मचा तहलका

बैठ पेड़ पर मछली सोचे
अब क्या होगा राम,
नज़ला हुआ मगर मामा को
मुझको हुआ जु.काम।

छाँय छाँय कर मेढक जी ने
छींका क्या दो बार,
पोखर भर में मचा तहलका
मेढक जी बीमार।

भागा पोखर से तब कछुआ
सिर पर रखकर पाँव,
लेकिन देखा छाँय–छाँय कर
छींके सारा गाँव।

~ उमा कांत मालवीय

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