Let us open our heart
सरस्वती की देख साधना, लक्ष्मी ने संबंध न जोड़ा, मिट्टी ने माथे के चंदन, बनने का संकल्प न छोड़ा

आओ मन की गांठें खोलें – अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Ji’s poems have deep roots in the India tradition. Here is one that describes a typical rural Indian house hold of the yester years. It is a picture that we are sadly losing rapidly under the pressure of “modernization” – Rajiv Krishna Saxena

आओ मन की गांठें खोलें

यमुना तट, टीले रेतीले,
घास–फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन मेँ,
तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर,
माँ के मुंह मेँ रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गांठें खोलें|

बाबा की बैठक मेँ बिछी
चटाई बाहर रखे खड़ाऊं,
मिलने वालोँ के मन मेँ
असमंजस, जाऊँ या न जाऊँ?
माथे तिलक, आँख पर ऐनक , पोथी खुली स्वयम से बोलें,
आओ मन की गांठें खोलें|

सरस्वती की देख साधना,
लक्ष्मी ने संबंध न जोड़ा,
मिट्टी ने माथे के चंदन,
बनने का संकल्प न छोड़ा,
नये वर्ष की अगवानी मेँ, टुक रुक लें, कुछ ताजा हो लें,
आओ मन की गांठें खोलें|

~ अटल बिहारी वाजपेयी

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