Sooner or later, we all compromise in life. Sooner or later, idealism gives way to realism. Here is a beautiful poem of Dushyant Kumar Ji – Rajiv Krishna Saxena
अब तो पथ यही है
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार‚
अब तो पथ यही है।
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है‚
एक हलका सा धुंधलका था कहीं‚ कम हो चला है‚
यह शिला पिघले न पिघले‚ रास्ता नम हो चला है‚
क्यों करूं आकाश की मनुहार‚
अब तो पथ यही है।
क्या भरोसा‚ कांच का घट है‚ किसी दिन फूट जाए‚
एक मामूली कहानी है‚ अधूरी छूट जाए‚
एक समझौता हुआ था रौशनी से‚ टूट जाए‚
आज हर नक्षत्र है अनुदार‚
अब तो पथ यही है।
यह लड़ाई‚ जो कि अपने आप से मैंने लड़ी है‚
यह घुटन‚ यह यातना‚ केवल किताबों में पढ़ी है‚
यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते‚ इरादों ने चढ़ी है‚
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार‚
अब तो पथ यही है।
∼ दुष्यन्त कुमार
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