Here is a poem that I received through a WhatsApp group. I do not know who wrote it but the poem is moving indeed. Rajiv Krishna Saxena
बाप का कंधा
मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा
जब मेरे कंधे पर खड़ा हो गया
मुझसे कहने लगा
देखो पापा मैं तुमसे बड़ा हो गया
मैंने कहा बेटा –
इस गलत फ़हमी में भले ही जकड़े रहना
मगर मेरा हाथ पकड़े रहना
जिस दिन दिन यह हाथ छूट जाएगा
बेटा तेरा तेरा रंगीन सपना भी टूट जाएगा
दुनिया वास्तव में उतनी हसीन नहीं है
देख तेरे पाँव तले अभी जमीन नहीं है
मैं तो बाप हूँ बेटा
बहुत खुश हो जाऊँगा
जिस दिन तू वास्तव में बड़ा हो जाएगा
मगर बेटे कंधे पर नहीं
जब तू जमीन पर खड़ा हो जाएगा
ये बाप तुझे अपना सब कुछ दे जाएगा!
और तेरे कंधे पर दुनियाँ से चला जाएगा!
~ अज्ञात
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