A Hindustani Gazal is presented, written by Shri Rajgopal Singh. It presents some bitter-sweet realities of life. Rajiv Krishna Saxena
बाकी रहा
कुछ न कुछ तो उसके – मेरे दरमियाँ बाकी रहा
चोट तो भर ही गई लेकिन निशाँ बाकी रहा
गाँव भर की धूप तो हँस कर उठा लेता था वो
कट गया पीपल अगर तो क्या वहाँ बाकी रहा
आग ने बस्ती जला डाली मगर हैरत है ये
किस तरह बस्ती में मुखिया का मकाँ बाकी रहा
खुश न हो उपलब्धियों पर ये भी तो पड़ताल कर
नाम है शोहरत भी है, पर तू कहाँ बाकी रहा
वक़्त की इस धुंध में सारे सिकंदर खो गए
ये ज़मि बाकी रही, बस आसमाँ बाक़ी रहा
~ राजगोपाल सिंह
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