दूर का सितारा – निदा फ़ाज़ली

दूर का सितारा – निदा फ़ाज़ली

Parents are divine beings. No one can love us and care for us as selflessly as mother and father do. Yet, we take them for granted while they are alive. Even get irritated. Once they are gone we realize how priceless they were for us. Nothing can ever take the place of parents. No one can love as purely as they did. Here is a very moving poem about a man who returns home long after the parents were dead and gone. How empty he finds the home that hardly feels like home… Rajiv Krishna Saxena

दूर का सितारा

मैं बरसों बाद
अपने घर को तलाश करता हुआ
अपने घर पहुंचा
लेकिन मेरे घर में
अब मेरा घर कहीं नहीं था
अब मेरे भाई
अजनबी औरतों के शौहर बन चुके थे
मेरे घर में
अब मेरी बहनें
अनजान मर्दों के साथ मुझसे मिलने आती थीं
अपने­अपने दायरों में तक्.सीम
मेरे भाई­बहन का प्यार
अब सिर्फ. तोहफों का लेन­देन बन चुका था

मैं जब तक वहां रहा
शेव करने के बाद
ब्रश, क्रीम, सेफ़्टी­रेज़र
खुद धोकर अटैची में रखता रहा
मैले कपड़े
खुद गिन कर लौंड्री में देता रहा

अब मेरे घर में
वो नहीं थे
जो बहुत सों में बंट कर भी
पूरे के पूरे मेरे थे
जिन्हें मेरी हर खोई चीज़ का पता याद था

मुझे काफी देर हो गई थी
देर हो जाने पर हर खोया हुआ घर
आस्मां का सितारा बन जाता है
जो दूर से बुलाता है
लेकिन पास नहीं आता है

∼ निदा फ़ाज़ली

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