Here is a lovely poem by Nida Fazali that makes so true comments on the journey of life. I specially like the first and the fourth stanzas. The first one shows how if we get what we desperately want from this life, it turns out to be essentially worthless. The fourth one focuses on the monotony of living that marks the major part of our lives. Rajiv Krishna Saxena
दुनिया जिसे कहते हैं‚ जादू का खिलौना है
दुनिया जिसे कहते हैं‚ जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है‚ खो जाए तो सोना है।
अच्छा सा कोई मौसम‚ तन्हा सा कोई आलम
हर वक्त का रोना तो‚ बेकार का रोना है।
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है, किस छत को भिगोना है।
ग़मा हो या खुशी दोनो कुछ देर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है‚ हँसना है न रोना है।
यह वक्त जो मेरा है‚ यह वक्त जो तेरा है
हर गाम पे पहरा है‚ फिर भी इसे खोना है।
आवारामिज़ाजी ने फैला दिया आंगन को
आकाश की चादर है‚ धरती का बिछौना है।
∼ निदा फ़ाज़ली
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