एक चाय की चुस्की - उमाकांत मालवीय

एक चाय की चुस्की – उमाकांत मालवीय

People keep a mask on (sipping tea and laughing) but inside there is so much suffering that remains hidden from others. Rajiv Krishna Saxena

एक चाय की चुस्की

एक चाय की चुस्की, एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा

चुभन और दंशन पैने यथार्थ के
पग–पग पर घेरे रहे प्रेत स्वार्थ के
भीतर ही भीतर मैं बहुत ही दहा

किंतु कभी भूले से कुछ नहीं कहा
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा

एक अदद गंध, एक टेक गीत की
बतरस भीगी संध्या बातचीत की
इन्हीं के भरोसे क्या क्या नहीं सहा

छू ली है सभी एक–एक इंतहा
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा

एक कसम जीने की, ढेर उलझनें
दोनों गर नहीं रहे, बात क्या बने
देखता रहा सब कुछ सामने ढहा

मगर कभी किसी का चरण नहीं गहा
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा

~ उमाकांत मालवीय

लिंक्स:

 

Check Also

अंधा युग युद्धान्त से प्रभु की मृत्यु तक

अंधा युग (शाप पाने से प्रभु मृत्यु तक) – धर्मवीर भारती

The great war of Mahabharata left a permanent scar on the Indian psyche. The politics, …

One comment

  1. एक कसम जीने की, ढेर उलझनें
    दोनों गर नहीं रहे, बात क्या बने
    देखता रहा सब कुछ सामने ढहा

    मगर कभी किसी का चरण नहीं गहा
    एक चाय की चुस्की, एक कहकहा
    क्या बात है ! अनुपम सृजन ,गीत शिल्पी की कलम से | नमन |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *