हाथ बटाओ - निदा फाजली

हाथ बटाओ – निदा फाजली

So many things are there in this word that an Omani-potant God can do to help. Why does He not? Here is a thoughtful poem from Nida Fazli. Rajiv Krishna Saxena

हाथ बटाओ

नील गगन पर बैठे कब तक
चांद सितारों से झांकोगे

पर्वत की ऊंची चोटी से कब तक
दुनियां को देखोगे

आदर्शों के बन्द ग्रंथों में कब तक
आराम करोगे

मेरा छप्पर टपक रहा है
बन कर सूरज इसे सुखाओ

खाली है आटे का कनस्तर
बन कर गेहूं इसमें आओ

मां का चश्मा टूट गया है
बन कर शीशा इसे बनाओ

चुप चुप हैं आंगन में बच्चे
बनकर गेंद इन्हें बहलाओ

शाम हुई है चांद उगाओ
पेड़ हिलाओ हवा चलाओ

काम बहुत है हाथ बटाओ अल्ला मीयां
मेरे घर भी आ ही जाओ अल्ला मीयां

~ निदा फाजली

लिंक्स:

 

 

Check Also

Purane patr

पुराने पत्र – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

These days no one write letters. In past-years, people wrote letters and the receivers preserved …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *