There are “friends” in our lives who keep trying to sabotage our plans in the background. Here is a poem for such “well-wishers”. Rajiv Krishna Saxena
हम जीवन के महा काव्य
हम जीवन के महा काव्य हैं
केवल छंद प्रसंग नहीं हैं
कंकड़ पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे
हम कब कहते बंधु! बिछाओ
स्वागत के मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग–तरंग नहीं हैं।
तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी
छिप–छिप कर जो करते रहते
शीत युद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।
कहते–कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर
हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर–भीतर से जो पोले
हम वे ढोल मृदंग नहीं हैं।
तुम सामूहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ
जहाँ–जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा उसे मिटाओ
जिसकी डोरी हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं हैं।
∼ देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’
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