जल – किशन सरोज

जल – किशन सरोज

Water is water but how different messages it gives under different conditions… Rajiv Krishna Saxena

जल

नींद सुख की फिर हमे सोने न देगा
यह तुम्हारे नैन में तिरता हुआ जल।

छू लिये भीगे कमल, भीगी ऋचाएँ
मन हुए गीले, बहीं गीली हवाएँ।
बहुत संभव है डुबो दे सृष्टि सारी,
दृष्टि के आकाश में घिरता हुआ जल।

हिमशिखर, सागर, नदी, झीलें, सरोवर,
ओस, आँसू, मेघ, मधु, श्रम, बिंदु, निर्झर,
रूप धर अनगिन कथा कहता दुखों की
जोगियों सा घूमता फिरता हुआ जल।

लाख बाँहों में कसें अब यह शिलाएँ,
लाख आमंत्रित करें गिरी कंदराएँ।
अब समंदर तक पहुँचकर ही रुकेगा,
पर्वतों से टूटकर गिरता हुआ जल।

∼ किशन सरोज

लिंक्स:

 

Check Also

You say some thing, I say some thing

कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी

Life is to be shared. It becomes very boring if it is not. Our daily …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *