जिंदगी बदल रही है
जब मैं छोटा था
दुनियाँ शायद बहुत बड़ी हुआ करती थी,
मुझे याद है, मेरे घर से स्कूल तक का वह रस्ता,
क्या–क्या नहीं था वहाँ,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बरफ के गोले,
सब कुछ!
अब वहाँ मोबाइल शॉप, विडियो पार्लर हैं
फिर भी सब सूना है,
शायद दुनियाँ अब सिमट रही हैं।
जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लंबी हुआ करती थीं,
मैं हाथ में पतंग की डोर लिये घंटों उड़ा करता था,
वो लंबी सइकिल रेस,
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक कर चूर हो जाना।
अब शाम नहीं होती,
दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है,
शायद वक्त सिमट रहा है।
जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ूम बना कर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें,
वो साथ में रोना,
अब भी कई दोस्त है पर दोस्ती जाने कहाँ हैं,
जब भी ट्रैफिक सिगनल पर मिलते हैं
हाई हो जाती है,
औ अपने–अपने रस्ते चल देते हैं।
होली दिवली न्यू इयर पर बस एस एम एस आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहे हैं।
जब मैं छोटा था,
खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपम छुपाई, लंगड़ी टांग, टिप्पी टिप्पी टाप,
और अब इंटरनेट, आफिस से फुरसत ही नहीं मिलती,
शायद जिंदगी बदल रही है।
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है,
जो कब्रिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है
मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गई मेरी यहाँ आते आते,
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है,
कल की कोई बुनियाद नहीं है,
और आने वाला कल सिर्फ सपने में है।
अब बच गए इस पल में,
तमन्नओं से भरी इस जिंदगी में,
हम सिर्फ भाग रहे हैं।
कुछ रफ्तार धीमी करो मेरे दोस्त,
और इस जिंदगी को जियो,
खूब जियो।
~ गुलज़ार
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना