कौन जाने – बालकृष्ण राव

कौन जाने – बालकृष्ण राव

Here is a well know poem by Bal Krishna Rao. The idea is put in beautiful words — In our mundane lives, the unexpected can happen any moment… Rajiv Krishna Saxena

कौन जाने

झुक रही है भूमि बायीं ओर‚ फिर भी
कौन जाने‚
नियति की आँखें बचाकर‚
आज धारा दाहिने बह जाए!

जाने
किस किरण–शर के वरद आघात से
निर्वर्ण रेखाचित्र यह बीती निशा का
रँग उठे कब‚ मुखर हो कब
मूक क्या कह जाए!

‘संभव क्या नहीं है आज?’
लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की
कर रही है प्रेरणा या प्रश्न अंकित?

कौन जाने
आज ही निःशेष हों सारे
सँजोए स्वप्न
दिन की सिद्धियों में–
या कहीं अवशिष्ट फिर भी
एक नूतन स्वप्न की संभावना रह जाए!

∼ बालकृष्ण राव

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