We always think that the next day or night would bring something new and break the hum-drum of life. But nothing new happens… Rajiv Krishna Saxena
लो दिन बीता
सूरज ढलकर पश्चिम पहुँचा
डूबा, संध्या आई, छाई
सौ संध्या सी वह संध्या थी
क्यों उठते–उठते सोचा था
दिन में होगी कुछ बात नई
लो दिन बीता, लो रात हुई
धीमे–धीमे तारे निकले
धीरे–धीरे नभ में फैले
सौ रजनी सी वह रजनी थी
क्यों संध्या में यह सोचा था
निशि में होगी कुछ बात नई
लो दिन बीता, लो रात हुई
चिड़ियाँ चहकीं, कलियाँ महकीं
पूरब से फिर सूरज निकला
जैसे होती थी सुबह हुई
क्यों सोते–सोते सोचा था
होगी प्रातः कुछ बात नई
लो दिन बीता, लो रात हुई
~ हरिवंश राय बच्चन
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना