Here are some more thought provoking verses from Nida Fazli. Rajiv Krishna Saxena
नई सहर आएगी
रात के बाद नए दिन की सहर आएगी
दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी
हँसते–हँसते कभी थक जाओ तो छुप कर रो लो
यह हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी
जगमगाती हुई सड़कों पर अकेले न फिरो
शाम आएगी किसी मोड़ पे डस जाएगी
और कुछ देर यूँ ही जंग, सियासत, मज़हब
और थक जाओ अभी नींद कहाँ आएगी
मेरी गुरबत* को शराफ़त का अभी नाम न दो
वक़्त बदला तो तेरी राय बदल जाएगी
वक़्त नदियों को उछाले कि उड़ाए पर्वत
उम्र का काम गुज़रना है गुज़र जाएगी
∼ निदा फ़ाज़ली
गुरबत: गरीबी
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