Nirvan Shatakam
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः, अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम

निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य

Adi Shankaracharya in 8th century AD undertook to revive the Vedantic interpretation of Hindu scripture in order to wean people away from elaborate Karmakand rituals. He roamed through the length and breadth of the Indian subcontinent and debated countless religious leaders. He was remarkably successful in his aim. Credit goes to him for reviving the vedantic philosophy in an era where people were gradually forgetting this epitome of Indian thought. Here is a very famous six stanza poem he wrote to explain the true nature of Man as Nirguna Brahma. This Nirvana Shatakam is in very simple Sanskrit and is in a perfect meter for singing. Please read it along with its Hindi translation. Translation is by my late mother Dr. Veerbala– Rajiv Krishna Saxena

 

निर्वाण षटकम्

मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं
श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे
न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥1॥

मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥2॥

मैं न प्राण चेतना हूं‚ न ही ह्यशरीर को चलाने वालीहृ पञ्च वायु हूं
मैं न ह्यशरीर का निर्माण करने वालीहृ सात धातुएं हूं‚ और न ही ह्यशरीर केहृ पाँच कोश
मैं न वाणी हूं‚ न हाथ हूं‚ न पैर‚ न ही विसर्जन की इंद्रियां हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः
न धर्मो न चार्थोन कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥

न मुझे किसी से वैर है‚ न किसी से प्रेम‚ न मुझे लोभ है‚ न मोह
न मुझे अभिमान है‚ न ईष्र्या
मैं धर्म‚ धन‚ लालसा एवं मोह से परे हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥4॥

मैं पुण्य‚ पाप‚ सुख और दुख से विलग हूं
न मैं मंत्र हूं‚ न तीर्थ‚ न ज्ञान‚ न ही यज्ञ
न मैं भोजन हूं‚ न ही भोगने योग्य हूं‚ और न ही भोक्ता हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

 

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥

न मुझे मृत्यु का डर है‚ न जाति का भय
मेरा न कोई पिता है‚ न माता‚ न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है‚ न मित्र‚ न गुरु‚ न शिष्य
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगत नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥6॥

मै निर्विकल्प हूं‚ निराकार हूं
मैं विचार विमुक्त हूं‚ और सर्व इंद्रियों से पृथक हूं
न मैं कल्पनीय हूं‚ न आसक्ति हूं‚ न ही मुक्ति हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

∼ आदि शंकराचार्य

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