फूल और कांटे – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

फूल और कांटे – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Flower and thorns are products of the same plant but have such different characteristics. Being born to same parents does not ensure similar character. Here is a famous poem of Hariaudh Ji – Rajiv Krishna Saxena

फूल और कांटे

हैं जनम लेते जगत में एक ही‚
एक ही पौधा उन्हें है पालता।
रात में उन पर चमकता चांद भी‚
एक ही–सी चांदनी है डालता।

मेह उन पर है बरसता एक–सा‚
एक–सी उन पर हवाएं हैं वहीं।
पर सदा ही यह दिखाता है समय‚
ढंग उनके एक–से होते नहीं।

छेद कर कांटा किसी की उंगलियां‚
फाड़ देता है किसी का वर वसन।
और प्यारी तितलियों का पर कतर‚
भौंर का है वेध देता श्याम तन।

फूल लेकर तितलियों को गोद में‚
भौंर को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधी औ’ निराले रंग से‚
है सदा देता कली दिल की खिला।

खटकता है एक सबकी आंख में‚
दूसरा है सोहता सुर सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे‚
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।

∼ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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One comment

  1. I am in 10th now but when I was in 5th I learnt this poem and still remember this,,It is so beautiful and full of memories that gave me a nostalgic feeling of the time when I and my friends were singing this together in our class room!! Such a nostalgic thing!I can never forget this

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