In the eras by gone, changes in society came at a very slow pace. Most people lived just as their forefathers lived. All this changed over the last century. We now experience an uncomfortable and break-neck pace of changes in our own lives that the famed author Alvin Toffler called “Future Shock”. A poet’s heart is very sensitive to such changes. Here is a very lovely poem by Amarnath Srivastava Ji depicting changes in lives and attitudes. Last two lines are my favorite – as we get tied up in our own pace, how fortunate is the un-encumbered free bird perched on the tree! Rajiv K. Saxena
पुण्य फलिभूत हुआ
पुण्य फलिभूत हुआ कल्प है नया
सोने की जीभ मिली
स्वाद तो गया
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे
अपनी जड़ भूल गई
द्वार की जया
हवा और पानी का अनुकूलन इतना
बंद खिड़किया बाहर की सोचें कितना
अपनी सुविधा से है
आँख में दया
मंजिल दर मंजिल है एक ज़हर धीमा
सीढ़ियाँ बताती हैं घुटनों की सीमा
मुझसे तो ऊंची है
डाल पर बया
∼ अमरनाथ श्रीवास्तव
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