There are dilemmas in life at every step. What to do? Which alternative to choose? And there are no authentic and correct answers. We must nonetheless make a choice. Rajiv Krishna Saxena
राह कौन सी जाऊं मैं
चौराहे पर लुटता चीर‚
प्यादे से पिट गया वजीर‚
चलूं आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति रचाऊं मैं‚
राह कौन सी जाऊं मैं?
सपना जन्मा और मर गया‚
मधु ऋतु में ही बाग झर गया‚
तिनके बिखरे हुए बटोरूं या नव सृष्टि सजाऊं मैं‚
राह कौन सी जाऊं मैं?
दो दिन मिले उधार में‚
घाटे के व्यापार में‚
क्षण क्षण का हिसाब जोड़ूं या पूंजी शेष लुटाऊं में‚
राह कौन सी जाऊं मैं?
~ अटल बिहारी वाजपेयी
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना