सच हम नहीं सच तुम नहीं – जगदीश गुप्त

सच हम नहीं सच तुम नहीं – जगदीश गुप्त

Life is a constant struggle. Without struggle, there is no life. The struggle must be met head-long and there is really no other option. Here is a nice poem by Jagdish Gupt Ji. I especially like the second stanza. It has a lovely flow of words and a great message too. – Rajiv Krishna Saxena

सच हम नहीं सच तुम नहीं

सच हम नहीं सच तुम नहीं,
सच है सतत संघर्ष ही।

संघर्ष से हट कर जिये तो क्या जिये हम या कि तुम,
जो नत हुआ वह मृत हुआ‚ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम,
जो पंथ भूल रुका नहीं‚
जो हार देख झुका नहीं‚
जिसने मरण को भी लिया हो जीत‚ है जीवन वही,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे,
जो है जहां चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे,
जो भी परिस्थितियां मिलें‚
कांटे चुभें‚ कलियां खिलें‚
टूटे नही इन्सान बस संदेश जीवन का यही,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को,
यह क्या मिलन‚ मिलना वही जो मोड़ दे मंझधार को,
जो साथ फूलों के चले‚
जो ढाल पाते ही ढले‚
यह जिंदगी क्या जिंदगी जो सिर्फ पानी–सी बही,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना,
अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना,
आकाश सुख देगा नहीं‚
धरती पसीजी है कहीं‚
हर एक राही को भटक कर ही दिशा मिलती रही,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता,
आदर्श हो सकती नही तन और मन की भिन्नता,
जब तक बंधी है चेतना‚
जब तक प्रणय दुख से घना‚
तब तक न मानूंगा कभी इस राह को ही मैं नहीं,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

∼ जगदीश गुप्त

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