संसार - महादेवी वर्मा

संसार – महादेवी वर्मा

World is full of delusions that turn ultimately into realization of the truth. In this sweet poem, Mahadevi Ji give several metaphors of this fact of life. Rajiv Krishna Saxena

संसार

निश्वासों सा नीड़ निशा का
बन जाता जब शयनागार,
लुट जाते अभिराम छिन्न
मुक्तावलियों के वंदनवार
तब बुझते तारों के नीरव नयनों का यह हाहाकार,
आँसू से लिख जाता है ‘कितना अस्थिर है संसार’!

हँस देता जब प्रात, सुनहरे
अंचल में बिखरा रोली,
लहरों की बिछलन पर जब
मचली पड़तीं किरणें भोली
तब कलियाँ चुपचाप उठा कर पल्लव के घूँघट सुकुमार,
छलकी पलकों से कहतीं है ‘कितना मादक है संसार’!

देकर सौरभ दान पवन से
कहते जब मुरझाए फूल,
‘जिसके पथ में बिछे वही
क्यों भरता इन आँखों में धूल’
‘अब इनमें क्या सार’ मधुर जब गाती भौंरों की गुंजार,
मर्मर का रोदन कहता है ‘कितना निष्ठुर है संसार’!

स्वर्ण वर्ण से दिन लिख जाता
जब अपने जीवन की हार
गोधूली नभ के आँगन में
देती अगणित दीपक बार
हँस कर तब उस पार तिमिर का कहता बढ़ बढ़ पारावार
‘बीते युग पर बन हुआ है अबतक मतवाला संसार’!

स्वप्नलोक के फूलों से कर
अपने जीवन का निर्माण,
‘अमर हमारा राज्य’ सोचते
हैं जब मेरे पागल प्राण
आकर तब अज्ञात देश से जाने किसकी मृदु झंकार,
गा जाती है करुण स्वरों में ‘कितना पागल है संसार’!

~ महादेवी वर्मा

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3 comments

  1. Very nice to c see such beautiful literature on this website. Really thankful. Regards, Ruchi sharma

  2. Plz try to put meanings too with the poem

  3. There is not a single channel that gives meanings for these poems. What is the use in the google when there is the same poem available in the school / college books. We need meaning of the poem

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