सोने के हिरन – कन्हैया लाल वाजपेयी

सोने के हिरन – कन्हैया लाल वाजपेयी

We all face disillusionment with life at times. All clichés that we grow up with don’t seem to hold and there are times when every thing looks absurd. A loss of faith occurs. This feeling is beautifully depicted in this poem. Rajiv Krishna Saxena

सोने के हिरन

आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।

संबंध सभी ने तोड़ लिये
चिंता ने कभी नहीं छोड़े
सब हाथ जोड़ कर चले गये
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।

सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमे
हम समझ गये पाषाणों के
वाणी मन नयन नहीं होते।

मंदिर मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े
उसने ही हाथ जलाये जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े।

जग जो कहना चाहे कह ले
अविरल जल धारा बह ले
पर जले हुए इन हाथों से
अब हमसे हवन नहीं होते।

∼ कन्हैया लाल वाजपेयी

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