We all live our lives and the fact is that no body’s experiences can really help us in real sense. Here is a reflection on these realities. A lovely poem by Nida Fazli. Rajiv Krishna Saxena
तेरा राम नहीं
तेरे पैरों चला नहीं जो
धूप छाँव में ढला नहीं जो
वह तेरा सच कैसे,
जिस पर तेरा नाम नहीं है?
तुझ से पहले बीत गया जो
वह इतिहास है तेरा
तुझको ही पूरा करना है
जो बनवास है तेरा
तेरी साँसें जिया नहीं जो
घरआँगन का दिया नहीं जो
वो तुलसी की रामायण है
तेरा राम नहीं।
तेरा ही तन पूजा घर है
कोई मूरत गढ़ ले
कोई पुस्तक साथ न देगी
चाहे जितना पढ़ ले
तेरे सुर में सज़ा नहीं जो
इकतारे पर बज़ा नहीं जो
वो मीरा की संपत्ती है
तेरा श्याम नहीं।
∼ निदा फ़ाज़ली
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