How fortune changes! Some one on top of the life goes under. Time is a great churner!! Here is a great poem by Chandrasen Virat Ji. Rajiv Krishna Saxena
तुम कभी थे सूर्य
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚
थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये।
यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का‚
थे कभी दुल्हा स्वयं‚ बारातियों तक आ गये।
वक्त का पहिया किसे कब‚ कहां कुचले क्या पता‚
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये।
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं‚
जो कि अध्यादेश थे‚ खुद अर्जियों तक आ गये।
देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो‚
बात ध्वज की थी चलाई‚ कुर्सियों तक आ गये।
प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले
घूम फिर कर देह की गोलाइयों तक आ गये।
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को‚
तुम ऋचाएं मानते थे‚ गालियों तक आ गये।
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा‚
देवताओं से शुरू की‚ वहशियों तक आ गये।
∼ चंद्रसेन विराट
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना
One comment
Pingback: डर लगता है! – कुमार विश्वास – Geeta-Kavita