In the midst of noise and extreme disarray, I am the voice of heart
जहाँ मरू–ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन।

तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद

In times of deep distress and depression, a ray of hope and optimism suddenly emerges in mind. This poem is dedicated to that optimism. Check out the lovely Anupras Alankar in the last line; five words starting with the letter “M”. Rajiv Krishna Saxena

तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन

विकल हो कर नित्य चंचल
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन।

चिर विषाद विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर वन की
मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन।

जहाँ मरू–ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन।

पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जी रहा झुक,
इस झुलसते विश्वदिन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन।

चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर से,
मधुप मुखर मरंद मुकुलित, मैं सजल जल जात रे मन।

∼ जयशंकर प्रसाद

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5 comments

  1. I want meaning of this poem

  2. I want the explanation of this poem

  3. I want to meaning of this poem.

  4. Beautiful translation. Quite useful for those who do not know the language but want to relish the essence of one of Hindi’s classic poem Kamayani.

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