Some times, a very empathetic and persistent enquiry from someone very close, moves one to tears. Here is a lovely poem by Balkrishna Rao. Rajiv Krishna Saxena
उत्तर न होगा वह
कोई दुख नया नहीं है
सच मानो, कुछ भी नहीं है नया
कोई टीस, कोई व्यथा, कोई दाह
कुछ भी, कुछ भी तो नहीं हुआ।।।
फिर भी न जाने क्यों
उठती–सी लगती है
अंतर से एक आह
जाने क्यों लगता है
थोड़ी देर और यदि ऐसे ही
पूछते रहोगे तुम
छलक पड़ेगा मेरी आँखों से अनायास
प्रश्न ही तुम्हारा यह
मेरी अश्रुधारा में।
प्रतिस्राव होगा वह रिसते संवेदन का
उत्तर न होगा वह।
~ बालकृष्ण राव
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